HomeArticleसोशल मीडिया पर नफरत और धार्मिक कट्टरता: एक जटिल सामाजिक संकट

सोशल मीडिया पर नफरत और धार्मिक कट्टरता: एक जटिल सामाजिक संकट

ज़की भारतीय

आज का युग डिजिटल युग है, जहां सोशल मीडिया ने लोगों को अपनी बात रखने का एक मंच प्रदान किया है। लेकिन यह मंच कई बार नफरत, कट्टरता, और धार्मिक वैमनस्य फैलाने का जरिया भी बन गया है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहां विभिन्न धर्मों और संस्कृतियों के लोग सदियों से एक साथ रहते आए हैं, सोशल मीडिया पर कुछ कट्टरपंथी तत्वों द्वारा फैलाई जा रही नफरत चिंता का विषय है। विशेष रूप से, कुछ हिंदूवादी समूहों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री और इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के संदर्भ में मुसलमानों के प्रति नफरत भरे कमेंट्स ने इस समस्या को और गहरा कर दिया है। हाल के दिनों में ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला अली खामनेई के खिलाफ ट्विटर (अब X) पर चल रही आपत्तिजनक पोस्ट्स और कार्टूनों ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। यह न केवल सामाजिक सौहार्द के लिए खतरा है, बल्कि यह भारत के संवैधानिक मूल्यों और धार्मिक सहिष्णुता की परंपरा के खिलाफ भी है। इस लेख में इस जटिल मुद्दे को समझने, इसके कारणों, प्रभावों, और संभावित समाधानों पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

सोशल मीडिया पर नफरत का प्रसार: एक अवलोकन

सोशल मीडिया, विशेष रूप से ट्विटर (अब X), फेसबुक, और व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म, आज लोगों के बीच विचारों के आदान-प्रदान का प्रमुख माध्यम बन गए हैं। लेकिन इनका दुरुपयोग भी उसी गति से हो रहा है। कुछ कट्टरपंथी हिंदू समूहों द्वारा मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरी पोस्ट्स, मीम्स, और कार्टून शेयर किए जा रहे हैं। उदाहरण के लिए, ईरान के सर्वोच्च धार्मिक नेता अयातुल्ला अली खामनेई, जो दुनिया भर के शिया मुसलमानों के लिए एक आदर्श और धार्मिक मार्गदर्शक हैं, उनके खिलाफ आपत्तिजनक कार्टून बनाना या उनकी मृत्यु की कामना करना न केवल अनैतिक है, बल्कि यह धार्मिक भावनाओं को आहत करने का एक गंभीर प्रयास भी है। हाल ही में ट्विटर पर कुछ पोस्ट्स में खामनेई को अपमानित करने वाली सामग्री देखी गई, जिसमें उनकी तस्वीरों के साथ आपत्तिजनक टिप्पणियां की गईं या उनके पुराने ट्वीट्स को गलत संदर्भ में पेश किया गया। ऐसी टिप्पणियां मुसलमानों को उकसाने का काम करती हैं, जो सामाजिक सौहार्द के लिए उचित नहीं है। ट्विटर पर ऐसी कुछ पोस्ट्स में “जय श्री राम” जैसे नारों का इस्तेमाल किया गया, जो हिंदू धर्म की छवि को भी नुकसान पहुंचाता है।
इसी तरह, इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में इजरायल के समर्थन में मुसलमानों के खिलाफ नफरत भरे कमेंट्स और फिलिस्तीनी बच्चों, महिलाओं, और नागरिकों पर हो रहे अत्याचारों का मजाक उड़ाना मानवता के खिलाफ है। यह सवाल उठता है कि क्या यह व्यवहार उन हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करता है जो भगवान श्री रामचंद्र जी के आदर्शों को मानते हैं? श्री राम, जिन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है, ने अपने जीवन में हमेशा धर्म, करुणा, और भाईचारे का पालन किया। फिर ये कट्टरपंथी हिंदू, जो नफरत और हिंसा का प्रचार करते हैं, कहां से आए? क्या यह उनकी अज्ञानता है, या इसके पीछे कोई सुनियोजित राजनीतिक एजेंडा है?

कट्टरता के कारण: सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

भारत में पिछले कुछ दशकों में राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ा है। कुछ राजनीतिक दल और संगठन, जैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP), हिंदुत्व की विचारधारा को बढ़ावा देते हैं। हालांकि, इन संगठनों का आधिकारिक रुख धार्मिक एकता और राष्ट्रीय एकीकरण पर जोर देता है, लेकिन कुछ अतिवादी तत्व इस विचारधारा का गलत इस्तेमाल करते हैं। सोशल मीडिया पर “जय श्री राम” के नारे के साथ इजरायल का समर्थन करना और मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाना इसका एक उदाहरण है। हाल के दिनों में, ट्विटर पर कुछ यूजर्स ने ईरान और खामनेई के खिलाफ पोस्ट्स में धार्मिक नारों का इस्तेमाल किया, जो न केवल धार्मिक भावनाओं को भड़काता है, बल्कि हिंदू धर्म की छवि को भी नुकसान पहुंचाता है।
सोशल मीडिया पर सामग्री की कोई सख्त निगरानी नहीं है। गलत सूचनाएं, फेक न्यूज, और नफरत भरे कंटेंट आसानी से वायरल हो जाते हैं। कुछ लोग इसे अपने निजी या राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करते हैं। उदाहरण के लिए, खामनेई के खिलाफ ट्विटर पर कुछ पोस्ट्स में उनके बयानों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया, जिससे यह गलत धारणा बनाई गई कि वे “आतंकवाद” का समर्थन करते हैं। ऐसी पोस्ट्स ने भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत को बढ़ावा दिया है।

कई लोग वैश्विक मुद्दों, जैसे इजरायल-फिलिस्तीन या इजरायल-ईरान संघर्ष, की जटिलता को समझे बिना पक्ष ले लेते हैं। वे इजरायल को “आतंकवाद विरोधी” के रूप में देखते हैं और फिलिस्तीनियों या ईरान को “आतंकवादी” मान लेते हैं। इस अज्ञानता के कारण वे मानवीय संकट को नजरअंदाज कर देते हैं और नफरत को बढ़ावा देते हैं। खामनेई, जो ईरान के सर्वोच्च धार्मिक और राजनीतिक नेता हैं, उनके खिलाफ ट्विटर पर चल रही कुछ पोस्ट्स में गलत सूचनाओं का सहारा लिया गया है, जैसे उनके पुराने ट्वीट्स को गलत संदर्भ में पेश करना या उनकी तस्वीरों के साथ अपमानजनक मीम्स बनाना। यह न केवल मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को आहत करता है, बल्कि भारत में सामाजिक तनाव को भी बढ़ाता है।

धार्मिक नेताओं के खिलाफ हमले

किसी भी धर्म के धार्मिक नेता, चाहे वह हिंदू महंत हों, मुस्लिम मौलाना हों, या ईसाई पादरी, समाज में सम्मान का स्थान रखते हैं। अयातुल्ला अली खामनेई जैसे धार्मिक नेता, जो दुनिया भर के शिया मुसलमानों के लिए एक सर्वोच्च धार्मिक मार्गदर्शक हैं, उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां या कार्टून बनाना धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है। ट्विटर पर हाल ही में कुछ पोस्ट्स में खामनेई को “आतंकवादी” या “हत्यारा” जैसे शब्दों से संबोधित किया गया, जो न केवल अनुचित है, बल्कि यह मुस्लिम समुदाय को उकसाने का एक जानबूझकर प्रयास भी प्रतीत होता है। भारत में जहां सभी धर्मों का सम्मान करने की परंपरा रही है, वहां ऐसी हरकतें सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचाती हैं।

नफरत के ठेकेदार डाल रहे हैं सामाजिक एकता पर प्रभाव

हिंदू और मुसलमानों के बीच बढ़ती नफरत सामाजिक एकता को कमजोर करती है। भारत, जो अपनी “गंगा-जमुनी तहजीब” के लिए जाना जाता है, में इस तरह की कट्टरता सामाजिक ताने-बाने को नष्ट कर सकती है। खामनेई के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट्स ने मुस्लिम समुदाय में असुरक्षा की भावना को बढ़ाया है। यदि युद्ध भारत और ईरान के बीच हो रहा होता तो ऐसे समय में हिंदू ,मुसलमान ,सिख और इसाई जो भी भारतीय है उन्हें ईरान के विरुद्ध बोलने का अधिकार था ,उसकी आलोचना करना देशभक्ति थी। जैसे अभी पाकिस्तान द्वारा कश्मीर में आतंकवादी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान पर जब हमला किया तो भारतीय मुसलमानो ने पाकिस्तान के विरुद्ध जहां रैलियां निकालकर प्रदर्शन किया वहीं पाकिस्तान का नामोनिशान मिटाने की बात की ।समाचार पत्रों में वह सुर्खियां आज भी मौजूद हैं । ऐसा नहीं था कि हिंदुस्तान के मुसलमान ने पाकिस्तान जिंदाबाद कहा उन्होंने पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए और पाकिस्तान का नामोनिशान मिटा देने की बात कही ।यह अलग बात है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के एक फोन पर सीज़ फायर किया । लेकिन मुसलमान ने कहीं से भी देशभक्ति के खिलाफ अपने दामन पर दाग नहीं लगने दिया।लेकिन युद्ध जब ईरान और इजरायल के मध्य हो रहा है तो आखिर इन हिंदुओं को किसने इजाजत दी कि वो इजराइल का समर्थन करें,जबकि इसराइल सरासर गलत कर रहा है।
उसने पहले फिलिस्तीन पर अत्याचार की सीमा लांघी अब वह ईरान पर अत्याचार कर रहा है ,यही नहीं अमेरिका जैसे उसके आका उसकी मदद कर रहे हैं।जबकि ईरान अभी तक अधिकतर देशों से अपनी सहायता लेने के लिए मना कर रहा है ।ऐसी हालात में इजराइल का साथ देने वाले लोगों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीख लेना चाहिए कि वह इस युद्ध में खुदा को तटस्थ रखे हुए हैं।

हिंसा की आशंका,भारत की वैश्विक छवि

सोशल मीडिया पर नफरत भरी पोस्ट्स हिंसा को भड़का सकती हैं। इतिहास गवाह है कि धार्मिक नफरत के कारण कई बार दंगे और हिंसक घटनाएं हुई हैं। उदाहरण के लिए, 2020 में दिल्ली दंगों में सोशल मीडिया की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत को विश्व में एक सहिष्णु और लोकतांत्रिक देश के रूप में जाना जाता है। लेकिन सोशल मीडिया पर नफरत भरी सामग्री, विशेष रूप से खामनेई जैसे नेताओं के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट्स, भारत की इस छवि को धूमिल कर सकती हैं।

संवैधानिक मूल्यों का उल्लंघन

भारत का संविधान सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता, और धार्मिक सहिष्णुता का अधिकार देता है। नफरत फैलाना और धार्मिक नेताओं का अपमान करना संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ है।इस जटिल समस्या का समाधान आसान नहीं है, लेकिन कुछ कदम उठाए जा सकते हैं।

सोशल मीडिया पर निगरानी

सरकार और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को मिलकर नफरत फैलाने वाली सामग्री, जैसे खामनेई के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट्स, पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। ऐसी पोस्ट्स को ब्लॉक करना, अकाउंट्स को सस्पेंड करना, और कानूनी कार्रवाई करना जरूरी है। ट्विटर (X) जैसे प्लेटफॉर्म्स को अपने कंटेंट मॉडरेशन नियमों को और सख्त करना होगा।

जागरूकता अभियान

लोगों को वैश्विक मुद्दों, जैसे इजरायल-फिलिस्तीन और इजरायल-ईरान संघर्ष, की जटिलता और धार्मिक सहिष्णुता के महत्व के बारे में शिक्षित करना जरूरी है। स्कूलों, कॉलेजों, और सामुदायिक केंद्रों में इस तरह के अभियान चलाए जा सकते हैं। साथ ही, सोशल मीडिया पर गलत सूचनाओं को पहचानने और उनसे बचने के लिए डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना होगा।

धार्मिक नेताओं की भूमिका

हिंदू, मुस्लिम, और अन्य धर्मों के धार्मिक नेताओं को एकजुट होकर नफरत के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। उनके संदेश सामाजिक सौहार्द को बढ़ावा दे सकते हैं। उदाहरण के लिए, हिंदू और मुस्लिम धार्मिक नेताओं द्वारा संयुक्त रूप से शांति और एकता का संदेश देने से समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

राजनीतिक जवाबदेही

राजनीतिक दलों को अपने समर्थकों द्वारा फैलाई जा रही नफरत के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। सभी दलों को धार्मिक एकता का संदेश देना चाहिए और अपने कार्यकर्ताओं को ऐसी गतिविधियों से दूर रहने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

कानूनी कार्रवाई

धार्मिक नफरत फैलाने वालों, विशेष रूप से धार्मिक नेताओं जैसे खामनेई के खिलाफ आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। भारत में पहले से ही ऐसे कानून मौजूद हैं, जैसे भारतीय दंड संहिता की धारा 153A (धार्मिक वैमनस्य को बढ़ावा देना) और 295A (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), जिनका प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है।

सामुदायिक पहल

सामुदायिक स्तर पर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के बीच संवाद को बढ़ावा देना चाहिए। सांस्कृतिक और धार्मिक आयोजनों में एक-दूसरे की भागीदारी को प्रोत्साहित करना सामाजिक एकता को मजबूत कर सकता है।
सोशल मीडिया पर नफरत और कट्टरता का प्रसार एक गंभीर सामाजिक संकट है, जो भारत की एकता और अखंडता के लिए खतरा बन सकता है। कुछ कट्टरपंथी हिंदुओं द्वारा मुसलमानों के खिलाफ फैलाई जा रही नफरत, विशेष रूप से इजरायल-ईरान संघर्ष के संदर्भ में अयातुल्ला अली खामनेई के खिलाफ आपत्तिजनक पोस्ट्स, न केवल अनैतिक है, बल्कि यह भगवान श्री रामचंद्र जी के आदर्शों के खिलाफ भी है। खामनेई, जो दुनिया भर के शिया मुसलमानों के लिए एक सर्वोच्च धार्मिक नेता और आदर्श हैं, उनके खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करना न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाता है, बल्कि यह सामाजिक तनाव को भी बढ़ाता है। भारत को अपनी गंगा-जमुनी तहजीब और संवैधानिक मूल्यों को बचाए रखने के लिए इस समस्या का समाधान करना होगा। सरकार, समाज, और धार्मिक नेताओं को मिलकर एक सकारात्मक और समावेशी समाज का निर्माण करना चाहिए, जहां सभी धर्मों के लोग सम्मान और प्रेम के साथ रह सकें।

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