ज़की भारतीय
लखनऊ, 23 नवंबर । कल्पना कीजिए, आपका पूरा परिवार 200 साल से यूपी की धरती पर जड़ें जमा चुका है, लेकिन आज चुनाव आयोग के एक पुराने कागज के टुकड़े की वजह से आपका वोट खोने का खतरा मंडरा रहा है। 2003 की वोटर लिस्ट में नाम न होने पर 12 दस्तावेजों की मांग कर डालना—क्या यह नागरिकता का प्रमाण-पत्र है या लोकतंत्र की दीवार पर दरार? उत्तर प्रदेश में चल रही स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) ने लाखों मतदाताओं को सड़क पर ला दिया है। किराएदारों की शिफ्टिंग, मकान नंबर नदारद और पुरानी लिस्टों में गड़बड़ी ज़ाहिर होने से एक सवाल खड़ा हो रहा हैं। आखिर इन त्रुटियों का जिम्मेदार कौन है ?
चुनाव आयोग का 2003 पर अटका ‘फिक्सेशन’ या सिस्टम की पुरानी खामियां?
यूपी की सड़कों पर घूमते लाखों किराएदारों की कहानी सुनिए। रामू चौधरी, लखनऊ के गोमती नगर में 11 महीने के एग्रीमेंट पर रहने वाले एक मजदूर हैं। “हम जैसे लोग तो मकान का रेन्यूअल होता देख ईश्वर को धन्यवाद देते हैं। नया घर ढूंढना आसान नहीं—किराया बढ़ता जाता है, मकान मालिक झगड़ते हैं। 2003 में हम लखनऊ आए थे, लेकिन उस वोटर लिस्ट में मेरा नाम नहीं। मां का नाम था, लेकिन मकान नंबर गायब! अब 12 दस्तावेज मांगो—पासपोर्ट, आधार, राशन कार्ड—मेरे पास कहां? हम तो सिर्फ वोट डालना चाहते हैं, नागरिकता साबित क्यों?” रामू की आवाज में गुस्सा और बेबसी घुली हुई है। वे अकेले नहीं। यूपी के शहरी इलाकों—लखनऊ, कानपुर, आगरा, वाराणसी—में लाखों किराएदार इसी जाल में फंसे हैं। 11 महीने का एग्रीमेंट खत्म होते ही नया घर, नया पता—लेकिन वोटर आईडी का पता पुराना। SIR के तहत अगर फॉर्म न भरा, तो नाम कट सकता है।
यह समस्या सिर्फ व्यक्तिगत नहीं, सिस्टमेटिक है।
2003 की SIR में चुनाव आयोग की ओर से हुई त्रुटियां आज भी सताने लगी हैं। पूरे मकान नंबर गायब, नाम छूटे हुए—कई इलाकों में पूरी कॉलोनियां लिस्ट से बाहर।

उदाहरण स्वरूप इस 2003 लिस्ट में भवन संख्या 394/21 गायब है। इस ग़लती का जिम्मेदार कौन कहलाएगा।क्या इलेक्शन कमिशन इसका जवाब दे सकता है। या वो लोग जो इस तरह की लिस्टो में मौजूद है लेकिन अपने मकान वर्षों पूर्व ही बेचकर या किराए के भवन खाली कर के जा चुके हैं लेकिन उनके नाम इन लिस्टों में भी और जहां वो गए उन लिस्टों में भी मौजूद थे। एक पूर्व चुनाव अधिकारी (नाम गोपनीय) बताते हैं, “2003 की रिवीजन में डेटा एंट्री में गड़बड़ी हुई। पुराने रिकॉर्ड तो रद्दी में चले गए—कागज खराब, डिजिटाइजेशन नहीं। अब SIR में 2003 को बेस मानना गलत है।” सवाल वाजिब है: अगर कोई 12 दस्तावेजों में से एक भी न दे पाए, तो क्या वह भारत का नागरिक नहीं? चुनाव आयोग ने 2003 से पहले के रिकॉर्ड खोलने का कोई रास्ता नहीं दिया।
पुरानी लिस्टें—1952, 1961, 1983-84, 1992-95—कहां हैं? अगर वे उपलब्ध हों, तो दादा-दादी के नाम से लिंक हो सकता है। लेकिन आयोग चुप। यूपी में आजादी के बाद से चले चुनावों की एक झलक डालिए तो साफ हो जाता है कि वोटर लिस्ट कितनी बार बदली।
स्वतंत्र भारत का पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ, जब कांग्रेस ने 346 सीटों में से 263 जीतीं। गोविंद बल्लभ पंत पहले मुख्यमंत्री बने। फिर 1957 में दोबारा कांग्रेस की जीत, लेकिन सीटें घटकर 430 हुईं। 1962: चंद्रभानु गुप्ता की अगुवाई में कांग्रेस मजबूत। 1967: पहली बार नॉन-कांग्रेस सरकार—चरण सिंह की अगुवाई में। 1969, 1974: कांग्रेस का डंका। 1977: इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी का तूफान—352 सीटें! राम नरेश यादव सीएम बने। 1980: कांग्रेस की वापसी। 1985, 1989: वीपी सिंह, मुलायम सिंह का दौर। 1991: BJP की कल्याण सिंह सरकार—बाबरी विध्वंस का दौर। 1993: मुलायम की SP। 1996: मायावती की पहली सरकार। 2002: BJP की वापसी। 2007: मायावती की BSP पूर्ण बहुमत। 2012: अखिलेश यादव की SP। 2017, 2022: योगी आदित्यनाथ की BJP। कुल 18 विधानसभा चुनाव (1952 से 2022 तक)।
लोकसभा की बात करें तो 80 सीटों वाला यूपी ‘सुपर पावर’ रहा। 1952: कांग्रेस 64 सीटें। 1957: 58। 1962: 62। 1967: 44 (कांग्रेस कमजोर)। 1971: 67। 1977: जनता पार्टी 53। 1980: कांग्रेस 52। 1984: 73 (इंदिरा लहर)। 1989: जनता दल 24। 1991: BJP 20। 1996: BJP 26। 1998: BJP 58। 1999: BJP 39। 2004: UPA की SP-BSP ने BJP को रोका। 2009: SP-BSP 46। 2014: BJP 73। 2019: BJP 62। 2024: BJP 33 (गठबंधन पर असर)। हर चुनाव से पहले वोटर लिस्ट रिवाइज हुई—1952-56 प्रारंभिक, 1961 राज्य स्तर, 1983-84 बड़े सुधार, 1992-95 व्यापक, 2002-03 आखिरी SIR। लेकिन ये रिकॉर्ड कहां?
अगर 60 साल के बुजुर्ग के माता-पिता का नाम 1984 की लिस्ट में है, तो क्यों न लिंक हो? दादा-दादी का नाम 1952 में—क्या वह फर्जी नागरिक साबित होंगे? चुनाव आयोग के पास पुराने डेटाबेस हैं, लेकिन खोलने को तैयार नहीं। एक 60 वर्षीय मतदाता राधा देवी कहती हैं, “मेरे पिता 1977 में वोट डाले, लेकिन 2003 में नाम नहीं। बच्चे थे हमने, आधार-वोटर आईडी कहां संभाली? अब पुत्र/पुत्री लिखें या माता का नाम? EPIC नंबर कहां से लाएं?”
यह विवाद सिर्फ आंकड़ों का नहीं, भावनाओं का है। यूपी के 15 करोड़ मतदाताओं में से करोड़ों प्रभावित। SIR का मकसद साफ—डुप्लिकेट नाम हटाना, नई जोड़ना। लेकिन 2003 पर अटकाव से किराएदार, प्रवासी, बुजुर्ग सब परेशान। एक सर्वे (ECI डेटा) बताता है कि 20% से ज्यादा नाम पुरानी त्रुटियों से छूटे। अगर पुरानी लिस्टें खोली जाएं, तो दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा। अन्यथा, 2026 के विधानसभा चुनाव में लाखों वोट ‘गायब’ हो जाएंगे। विशेषज्ञ कहते हैं, “ECI को 1952 से डिजिटल आर्काइव बनाना चाहिए।
नागरिकता साबित करने का बोझ मतदाता पर क्यों?
अब सवाल: SIR का क्या होगा? चल रही प्रक्रिया 4 दिसंबर 2025 तक चलेगी। बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) घर-घर जाकर एन्यूमरेशन फॉर्म बांट रहे हैं। अगर आपका नाम 2003 लिस्ट में है, तो कोई दस्तावेज न दें—बस फॉर्म भरें। नाम न होने पर 12 में से एक (आधार, पासपोर्ट, राशन कार्ड, जन्म प्रमाण-पत्र आदि) दें। फॉर्म भरने के बाद नाम चेक कैसे?
9 दिसंबर 2025 को ड्राफ्ट लिस्ट पब्लिश होगी। 8 जनवरी 2026 तक क्लेम/ऑब्जेक्शन दाखिल करें। सुनवाई-वेरिफिकेशन 31 जनवरी तक। फाइनल लिस्ट 7 फरवरी 2026 को।
ऑनलाइन कैसे?
voters.eci.gov.in पर जाएं, EPIC/मोबाइल लिंक करें। फॉर्म 6 (नया नाम), 7 (डिलीशन), 8 (करेक्शन) भरें। Voter Helpline ऐप से भी।
नए नाम दाखिल करने की आखिरी तारीख? SIR के बाद भी Form 6 कहीं भी भर सकते हैं, लेकिन 1 जनवरी 2026 तक 18 साल पूरे वाले जल्दी करें।
करेक्शन फॉर्म: Form 8 से पता/नाम बदलें। ऑनलाइन: NVSP पोर्टल पर ‘Correction of Entries’ चुनें, दस्तावेज अपलोड (शादी प्रमाण-पत्र, पता प्रमाण)। ऑफलाइन: BLO/ERO ऑफिस में।
शादीशुदा महिलाओं के लिए खास: मान लीजिए, रानी का नाम मायके के पते पर है। 2 साल पहले फतेहपुर में शादी हुई, अब ससुराल जाना है। पुराने पते पर SIR फॉर्म आया—भर दिया। अब नया पता अपडेट कैसे?
Form 8 भरें। पुराने EPIC से ‘Correction’ चुनें, नया पता (ससुराल) डालें। दस्तावेज: शादी प्रमाण-पत्र, पति का EPIC, नया पता प्रमाण (बिजली बिल, किराया एग्रीमेंट)। ऑनलाइन सबमिट करें—
रेफरेंस नंबर मिलेगा। 15-20 दिन में नई वोटर आईडी डाउनलोड या डाक से। अगर SIR फॉर्म में गलती: BLO को बताएं, वे सुधारेंगे। महिलाओं को प्राथमिकता—ECI हेल्पलाइन 1950 पर कॉल करें।
ये कदम अपनाकर कोई मतदाता वंचित न रहे। चुनाव आयोग के निर्देश के अनुसार BLO से संपर्क करें , फॉर्म समय पर जमा करें। अगर पुरानी लिस्ट खोली गई, तो लाखों को राहत मिलेगी वरना यह SIR न सिर्फ वोटर लिस्ट साफ करेगी, बल्कि लोकतंत्र पर सवाल भी खड़े करेगी। यूपीवासी जागें—आपका वोट आपकी ताकत है। क्या चुनाव आयोग सुन रहा है?



