ज़की भारतीय
लखनऊ, 1 जून। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वदेशी अपील हाल के दिनों की है, लेकिन इसमें किसानों और व्यापारियों का समर्थन पाने की नाकाम कोशिश दिखती है। उनकी स्वदेशी अपनाने की अपील में कई कमियां हैं, जिन्हें इस लेख में उजागर करने की कोशिश की गई है। मैं यह बताना चाहता हूं कि देश की ज्यादातर जनता स्वदेशी उत्पादों का ही उपयोग करती है, लेकिन जहां स्वदेशी चीजों का उपयोग कम हो रहा है, उसके पीछे कुछ कमियां और त्रुटियां हैं, जिन्हें दूर करना जरूरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की स्वदेशी अपील ने फिर सुर्खियां बटोरी हैं। इस अपील में देशवासियों से गन्ने का जूस, नारियल पानी, और स्थानीय फलों के रस जैसे देसी उत्पादों को अपनाने की बात कही गई है, ताकि भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत हो, किसानों को लाभ मिले, और स्थानीय रोजगार बढ़े। संदेश में दावा है कि यदि 121 करोड़ भारतीयों में से 10% लोग रोज 10 रुपये का देसी जूस पिएं, तो महीने में 3600 करोड़ रुपये देश में रहेंगे, और 90 दिनों तक विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करने से भारत दुनिया का दूसरा सबसे धनी देश बन सकता है। लेकिन इस अपील के पीछे की सच्चाई क्या है? यदि स्वदेशी इतना ही जरूरी है, तो विदेशी उत्पादों को भारत में बिक्री की खुली छूट क्यों? यह दोहरा रवैया जनता को भ्रमित क्यों कर रहा है? स्वदेशी जरूरी है, लेकिन यह तभी संभव है जब सरकार विदेशी उत्पादों को नियंत्रित करने की ठोस नीति बनाए, न कि केवल भावनात्मक अपीलों के सहारे जनता को प्रभावित करे। यह समय है कि सरकार और नागरिक मिलकर ऐसी व्यवस्था बनाएं जो स्वदेशी को बढ़ावा दे, लेकिन वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत की स्थिति को भी मजबूत रखे। वरना, खाली भावनात्मक बातों से कुछ नहीं होने वाला। सिर्फ जनता को स्वदेशी चीजें खरीदने का भाषण देने से बेहतर है कि विदेशी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाया जाए, ताकि देश में बनी हर चीज की बिक्री अपने आप बढ़े।
प्रधानमंत्री ने अपनी अपील में कहा है कि कोका-कोला, पेप्सी, मैगी, मैकडॉनल्ड्स, और नेस्ले जैसे विदेशी ब्रांड्स का बहिष्कार कर देसी जूस और स्थानीय उत्पादों को अपनाने से किसानों की आय बढ़ेगी और लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा। संदेश में भावनात्मक तर्क भी हैं: कोलगेट के बिना लोग दांत साफ करते थे, फेयर एंड लवली के बिना भारतीय नारियां सुंदर थीं, पैंटीं के बिना लोग गंजे नहीं थे। लेकिन सवाल यह है कि जब सरकार स्वदेशी की इतनी बड़ी बात कर रही है, तो विदेशी उत्पादों को भारत में बिक्री की अनुमति क्यों दी जा रही है? कोका-कोला, पेप्सी, और केएफसी जैसे ब्रांड्स न केवल भारत में बिक रहे हैं, बल्कि इन्होंने स्थानीय स्वाद को अपनाकर, जैसे “मसाला डोसा बर्गर” या “मसाला चाय लट्टे”, भारतीय बाजार में गहरी पैठ बना ली है।
विदेशी उत्पादों की खुली छूट: दोहरा रवैया?
यदि स्वदेशी इतना जरूरी है, तो विदेशी कंपनियों को भारत में कारोबार की खुली छूट क्यों? ये कंपनियां न केवल उत्पाद बेचती हैं, बल्कि भारत में बोतलिंग प्लांट्स, उत्पादन इकाइयां, और आपूर्ति श्रृंखला चलाती हैं, जिससे लाखों भारतीयों को रोजगार मिलता है। लखनऊ जैसे शहरों में मैकडॉनल्ड्स, केएफसी, और स्टारबक्स जैसे ब्रांड्स न केवल उपभोक्ताओं को आकर्षित करते हैं, बल्कि स्थानीय स्तर पर नौकरियां भी देते हैं। इन कंपनियों पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना न केवल अव्यावहारिक है, बल्कि यह उन भारतीय डीलरों, एजेंटों, और कर्मचारियों को नुकसान पहुंचाएगा जो इनके साथ काम करते हैं।सवाल यह है कि जब सरकार स्वदेशी की बात करती है, तो वह विदेशी उत्पादों को बाजार में क्यों ला रही है? लोग पैकेज्ड कोका-कोला या पेप्सी इसलिए खरीदते हैं, क्योंकि ये साफ, सुविधाजनक, और आकर्षक हैं। दूसरी ओर, स्थानीय जूस स्टॉल्स पर कई बार स्वच्छता की कमी, मक्खियां, या गंदगी की शिकायत रहती है। क्या कोई व्यक्ति गन्ने का जूस पिएगा, जिसमें मक्खियां भिनभिना रही हों, या वह साफ-सुथरी पैकेज्ड बोतल चुनेगा? लोग स्वदेशी चीजें चाहते हैं, लेकिन वे गुणवत्ता और स्वच्छता भी चाहते हैं। यदि सरकार स्वदेशी को बढ़ावा देना चाहती है, तो उसे देसी उत्पादों की गुणवत्ता, पैकेजिंग, और मार्केटिंग पर ध्यान देना होगा।
उपभोक्ता की पसंद और स्वच्छता का सवाल
लोग देसी चीजें खूब इस्तेमाल करते हैं। दाल, चावल, गन्ने का जूस, और नारियल पानी जैसे उत्पाद पहले से ही भारतीयों की पसंद हैं। लेकिन विदेशी उत्पादों की लोकप्रियता का कारण उनकी गुणवत्ता, पैकेजिंग, और ब्रांडिंग है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति गन्ने का जूस तभी पसंद करेगा, जब वह साफ-सुथरे ढंग से परोसा जाए। यदि जूस स्टॉल पर गंदगी हो, मक्खियां हों, या स्वच्छता का अभाव हो, तो वह पैकेज्ड कोल्ड ड्रिंक की ओर क्यों न जाएगा? स्वदेशी को बढ़ावा देने के लिए सरकार को स्थानीय उत्पादों की गुणवत्ता और स्वच्छता पर काम करना होगा।
लखनऊ में हजरतगंज, गोमती नगर, और अन्य बाजारों में जूस स्टॉल्स की संख्या अच्छी है, लेकिन कई बार इनकी स्थिति देखकर लोग इन्हें चुनने से हिचकते हैं। यदि सरकार इन स्टॉल्स को बेहतर सुविधाएं, जैसे स्वच्छता प्रशिक्षण, आधुनिक उपकरण, और कम ब्याज पर ऋण दे, तो लोग स्वदेशी उत्पादों की ओर आकर्षित होंगे। लेकिन इसके बजाय, सरकार एक तरफ स्वदेशी की बात करती है और दूसरी तरफ विदेशी ब्रांड्स को बाजार में लाकर उनकी बिक्री को बढ़ावा देती है। यह दोहरा रवैया जनता को भ्रमित करता है।
विदेशी उत्पादों पर नियंत्रण की जरूरत
यदि सरकार वास्तव में स्वदेशी को बढ़ावा देना चाहती है, तो उसे विदेशी उत्पादों पर सख्त नियंत्रण करना होगा। पूर्ण प्रतिबंध शायद संभव न हो, क्योंकि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था का हिस्सा है। भारत न केवल विदेशी उत्पादों का आयात करता है, बल्कि सॉफ्टवेयर, दवाएं, और मसाले जैसे उत्पादों को निर्यात भी करता है। यदि भारत विदेशी उत्पादों पर प्रतिबंध लगाएगा, तो अन्य देश भी भारतीय निर्यात पर प्रतिबंध लगा सकते हैं, जो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाएगा। लेकिन सरकार आयात शुल्क और टैरिफ को बढ़ाकर विदेशी उत्पादों की कीमत को नियंत्रित कर सकती है, ताकि देसी उत्पादों को प्रतिस्पर्धा में लाभ मिले।हालांकि, वर्तमान में सरकार इन विदेशी उत्पादों से भारी कर और टैरिफ के जरिए कमाई भी कर रही है। कोका-कोला, पेप्सी, और अन्य ब्रांड्स पर लगने वाला जीएसटी और आयात शुल्क सरकार की आय का हिस्सा है। यह राजस्व सड़कों, रेल, और शिक्षा जैसे विकास कार्यों में उपयोग होता है। तो क्या सरकार स्वदेशी की बात केवल जनता को प्रभावित करने के लिए कर रही है, जबकि वह खुद विदेशी उत्पादों से कमाई कर रही है? यह सवाल जनता के मन में उठ रहा है।
क्या है संदेश के दावों का सच ?
संदेश में दावा किया गया है कि 90 दिनों में विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करने से भारत दुनिया का दूसरा सबसे धनी देश बन सकता है और 2 रुपये 1 डॉलर के बराबर हो सकते हैं। यह दावा पूरी तरह अतिशयोक्तिपूर्ण है। भारतीय रुपये की कीमत वैश्विक व्यापार, तेल की कीमतें, विदेशी निवेश, और कई जटिल कारकों पर निर्भर करती है। केवल विदेशी उत्पादों का बहिष्कार करके इतने कम समय में इतना बड़ा बदलाव असंभव है।इसके अलावा, संदेश में लोगों को विदेशी उत्पाद खरीदने के लिए दोषी ठहराया जा रहा है, जो ठीक नहीं। देशभक्ति का मतलब यह नहीं कि लोग अपनी पसंद छोड़ दें। यदि कोई व्यक्ति कोका-कोला या मैकडॉनल्ड्स का आनंद लेना चाहता है, तो उसे इसके लिए देशद्रोही नहीं कहा जा सकता। स्वदेशी को बढ़ावा देना एक बात है, लेकिन लोगों की पसंद को भावनात्मक रूप से दबाना दूसरी बात।
लखनऊ में स्वदेशी की संभावनाएं
लखनऊ और आसपास के क्षेत्रों में गन्ने, आम, और अन्य फलों का उत्पादन प्रचुर मात्रा में होता है। यदि सरकार स्थानीय जूस स्टॉल्स और छोटे व्यवसायों को प्रोत्साहन दे, जैसे कम ब्याज पर ऋण, स्वच्छता प्रशिक्षण, और बेहतर पैकेजिंग की सुविधा, तो लोग स्वदेशी उत्पादों की ओर आकर्षित होंगे। लेकिन इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे, न कि केवल भाषण देने होंगे।
भाषण नहीं, ठोस कदम चाहिए
स्वदेशी अपील में सकारात्मक मंशा हो सकती है, लेकिन यह केवल भावनात्मक नारों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए। यदि सरकार वास्तव में स्वदेशी को बढ़ावा देना चाहती है, तो उसे विदेशी उत्पादों पर सख्त नियंत्रण करना होगा। पूर्ण प्रतिबंध शायद संभव न हो, लेकिन आयात शुल्क और टैरिफ को बढ़ाकर देसी उत्पादों को प्रतिस्पर्धा में लाभ दिया जा सकता है। साथ ही, स्वदेशी उत्पादों की गुणवत्ता, स्वच्छता, और पैकेजिंग पर ध्यान देना होगा।लोग देसी चीजें चाहते हैं, लेकिन वे साफ-सुथरी और गुणवत्तापूर्ण चीजें चाहते हैं। गन्ने का जूस हो या दाल-चावल, हर भारतीय स्वदेशी उत्पादों को अपनाने को तैयार है, बशर्ते वे गुणवत्ता और सुविधा में विदेशी उत्पादों से कम न हों। सरकार को चाहिए कि वह विदेशी उत्पादों को आकर्षक ढंग से बाजार में लाने की बजाय, देसी उत्पादों को बेहतर बनाने पर ध्यान दे। वरना, यह स्वदेशी की बात केवल जनता को भ्रमित करने का एक और प्रयास साबित होगी।