ज़की भारतीय
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में स्मार्ट मीटरों को लेकर चल रहा विवाद अब चरम पर पहुंच गया है। यह मुद्दा न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश में चर्चा का केंद्र बन चुका है। स्मार्ट मीटरों की स्थापना, जो सरकार ने बिजली वितरण को पारदर्शी और आधुनिक बनाने के लिए शुरू की थी, अब जनता के लिए सिरदर्द बन गई है। सोशल मीडिया से लेकर सड़कों तक, लोग इस नीति के खिलाफ खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। सवाल उठ रहे हैं कि क्या स्मार्ट मीटर वाकई सुविधा हैं या जनता की जेब पर डाका डालने का एक नया हथियार?
स्मार्ट मीटर: वरदान या जनता की जेब पर बोझ?
सरकार का दावा था कि स्मार्ट मीटर बिजली की सटीक बिलिंग, चोरी पर रोक और उपभोक्ताओं को ऑनलाइन सुविधाएं प्रदान करेंगे। लेकिन हकीकत इससे उलट है। लखनऊ समेत पूरे उत्तर प्रदेश में लाखों उपभोक्ता स्मार्ट मीटरों से परेशान हैं। सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट्स में लोग शिकायत कर रहे हैं कि स्मार्ट मीटर पुराने मीटरों की तुलना में कई गुना ज्यादा बिल दिखा रहे हैं। कई उपभोक्ताओं ने बताया कि उनके बिल अचानक 2 से 3 गुना बढ़ गए हैं।
उदाहरण के लिए, लखनऊ के एक उपभोक्ता ने बताया कि उनका मासिक बिल पहले 1200 रुपये का आता था, लेकिन स्मार्ट मीटर लगने के बाद यह 3200 रुपये तक पहुंच गया। इसी तरह, कई अन्य उपभोक्ताओं ने आरोप लगाया कि मीटरों में तकनीकी खामियां हैं, जो बिजली की खपत को गलत तरीके से बढ़ा-चढ़ाकर दिखा रही हैं। एक यूजर ने सोशल मीडिया पर लिखा, “अगर स्मार्ट मीटर सही हैं, तो सरकार उनकी विश्वसनीयता साबित क्यों नहीं करती? बिना जांच के इन्हें थोपना जनता के साथ धोखा है।”
बिना सहमति के प्रीपेड मोड में बदलाव, कानूनी उल्लंघन का आरोप
विवाद तब और गहराया जब पता चला कि बिजली कंपनियों ने लाखों उपभोक्ताओं की सहमति के बिना स्मार्ट मीटरों को प्रीपेड मोड में बदल दिया। राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इसे विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 47(5) का उल्लंघन बताया। परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने कहा, “2.54 लाख मीटरों को बिना अनुमति प्रीपेड मोड में कन्वर्ट करना गैरकानूनी है। यह उपभोक्ताओं के अधिकारों का हनन है।”
परिषद ने यह भी आरोप लगाया कि 5% मीटरों पर चेक मीटर लगाने का नियम लागू नहीं किया गया, जिससे मीटरों की सटीकता की जांच असंभव है। कई उपभोक्ताओं ने शिकायत की कि उनकी सिक्योरिटी राशि को बिना सूचना के मीटर में रिचार्ज कर दिया गया, जिससे उन्हें आर्थिक नुकसान हुआ। एक यूजर ने लिखा, “यह मीटर नहीं, स्मार्ट ठगी का जरिया हैं। बिजली कंपनियां हमारी मेहनत की कमाई लूट रही हैं।”
जनता का सवाल: जब पुराने मीटर सही, तो स्मार्ट मीटर की क्या जरूरत?
बिजली विभाग का दावा है कि स्मार्ट मीटर और पुराने मीटर की रीडिंग एक जैसी होती है। विभाग ने कहा कि चेक मीटर लगाकर दोनों की रीडिंग की तुलना की गई, और कोई अंतर नहीं पाया गया। लेकिन जनता का सवाल है, “अगर पुराने मीटर और स्मार्ट मीटर की रीडिंग एक जैसी है, तो सरकार को स्मार्ट मीटर लगाने की क्या जरूरत है? पुराने मीटर ही ठीक काम कर रहे हैं, तो उन्हें क्यों हटाया जा रहा है?” उपभोक्ताओं का कहना है कि स्मार्ट मीटरों की लागत और रखरखाव का खर्च अंततः उनकी जेब से ही वसूला जाएगा।
एक उपभोक्ता ने सोशल मीडिया पर लिखा, “स्मार्ट मीटर लगाने का मतलब है निजी कंपनियों को फायदा पहुंचाना। अगर पुराने मीटर सही हैं, तो उन्हें रहने दें। स्मार्ट मीटर थोपकर जनता को परेशान क्यों किया जा रहा है?”
जनता का गुस्सा और विरोध की लहर
स्मार्ट मीटरों के खिलाफ जनता का गुस्सा अब सड़कों पर भी दिखने लगा है। सोशल मीडिया पर लोग इसे “स्मार्ट लूट मशीन” करार दे रहे हैं। एक यूजर ने लिखा, “ये मीटर हटाओ, पुराने मीटर वापस लाओ।” एक अन्य ने सवाल उठाया, “अगर स्मार्ट मीटर इतने अच्छे हैं, तो सरकारी दफ्तरों और मंत्रियों के घरों में क्यों नहीं लगाए गए?”
कई इलाकों में बिजली कर्मचारियों और अभियंताओं ने भी स्मार्ट मीटर नीति के खिलाफ काला दिवस मनाने की घोषणा की है। उपभोक्ता परिषद ने मांग की है कि स्मार्ट मीटरों की स्थापना पर तत्काल रोक लगाई जाए और एक उच्चस्तरीय जांच कमेटी गठित की जाए। परिषद ने चेतावनी दी कि अगर यह मुद्दा नहीं सुलझा, तो आंदोलन और तेज होगा।
सरकार और बिजली कंपनियों की चुप्पी
इस गंभीर मुद्दे पर सरकार और बिजली कंपनियों की चुप्पी सवाल खड़े कर रही है। उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के अधिकारियों का कहना है कि शिकायतों की जांच की जाएगी, लेकिन कोई ठोस समयसीमा नहीं दी गई। कुछ सूत्रों का दावा है कि स्मार्ट मीटर बनाने वाली निजी कंपनियों को इस योजना से भारी मुनाफा हो रहा है। उपभोक्ता परिषद ने आरोप लगाया कि यह पूरी योजना निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई है।
स्मार्ट मीटर—समाधान या समस्या?
स्मार्ट मीटरों का मकसद बिजली वितरण को बेहतर करना था, लेकिन यह जनता के लिए परेशानी का सबब बन गए हैं। लखनऊ से शुरू हुआ यह विवाद अब पूरे उत्तर प्रदेश में फैल चुका है और अन्य राज्यों में भी इसका असर दिख सकता है। जनता का सवाल साफ है—जब पुराने मीटर सही काम कर रहे हैं, तो स्मार्ट मीटर की क्या जरूरत? सरकार को चाहिए कि वह जनता की शिकायतों का तुरंत समाधान करे, मीटरों की गुणवत्ता की जांच कराए और बिना सहमति के प्रीपेड मोड में बदलाव पर रोक लगाए।
अगर समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह मुद्दा और गंभीर रूप ले सकता है। यह खबर न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश के लिए एक सबक है कि तकनीकी प्रगति के नाम पर जनता के हितों से समझौता नहीं किया जा सकता। स्मार्ट मीटर विवाद ने एक बड़ी बहस को जन्म दे दिया है, और आने वाले दिन बताएंगे कि सरकार इस चुनौती का सामना कैसे करती है।