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लखनऊ में हुसैनाबाद ट्रस्ट द्वारा पहली मोहर्रम पर शाही जरी का जुलूस बरामद

लखनऊ, 27 जून । नवाबों के शहर लखनऊ में आज पहली मोहर्रम के अवसर पर हुसैनाबाद ट्रस्ट द्वारा 187 वा शाही ज़री का भव्य जुलूस अपनी पूरी शान-शौकत के साथ बड़े इमामबाड़े से निकाला गया। इस जुलूस का आग़ाज़ बड़े इमामबाड़े में एक मजलिस के आयोजन के साथ हुआ, मजलिस को मौलाना अली हैदर ने खिताब किया। जिसमें हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 72 साथियों की शहादत को याद किया गया। हजारों अकीदतमंदों ने इस जुलूस में शिरकत की, जो रूमी गेट, नींबू पार्क,घंटाघर, सतखंडा, और रईस मंजिल होते हुए देर रात छोटे इमामबाड़े पहुंचकर समाप्त होगा।


जुलूस में शाही जरी के साथ-साथ ताजिए, हाथी, घोड़े, और ऊंट पर शाही निशान लिए लोग शामिल थे। हजरत इमाम हुसैन की सवारी का प्रतीक दुलदुल (ज़ुलजनाह)और हजरत अब्बास अलैहिस्सलाम का अलम भी जुलूस की रौनक बढ़ा रहा था। इसके अलावा, मोम और अबरक से बनी शाही ज़री, जुलजनाह, और अन्य तबर्रुकात ने जुलूस को ऐतिहासिक और आध्यात्मिक महत्व प्रदान किया। अंजुमनें और मातमी दस्ते सलाम और नौहों के साथ कर्बला के शहीदों को याद करते हुए जुलूस में चल रहे थे।
इस दौरान श्रद्धालुओं की आंखें नम थीं, क्योंकि हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की दर्दनाक शहादत का गम आज से शुरू होकर यौम-ए-आशूरा (6 जुलाई) तक जारी रहेगा। पुराने लखनऊ के घरों और इमामबाड़ों में काले परचम लहराए गए हैं, और अजाखानों में अलम और ताजिए सजाए गए हैं। सुबह से शुरू हुई मजलिसों का सिलसिला देर शाम तक चला, जिसमें शिया और सुन्नी समुदाय के लोग शामिल हुए।

सुरक्षा के कड़े इंतजाम

सूत्रों के मुताबिक जुलूस के लिए पुलिस प्रशासन ने व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की है। लगभग 500 पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई है, जिसमें 2 डीसीपी, 10 एडीसीपी, 10 एसीपी, कई इंस्पेक्टर, 50 दरोगा, 20 महिला दरोगा, 50 सिपाही, 50 महिला सिपाही, 28 बाइक सवार पुलिसकर्मी, 10 घुड़सवार पुलिस, 10 क्लस्टर मोबाइल, 5 क्यूआरटी और 5 कंपनी पीएसी शामिल हैं। ड्रोन और हाई-रिजोल्यूशन सीसीटीवी कैमरों से जुलूस की निगरानी की जा रही है। सोशल मीडिया पर अफवाहों और आपत्तिजनक पोस्ट पर नजर रखने के लिए विशेष मॉनिटरिंग यूनिट बनाई गई है।

ट्रैफिक डायवर्जन

जुलूस के कारण पुराने लखनऊ में शाम 6 बजे से ट्रैफिक डायवर्जन लागू किया गया है। पक्का पुल चौराहे से बड़ा इमामबाड़ा, रूमी गेट, और घंटाघर से छोटा इमामबाड़ा तक वाहनों का आवागमन पूरी तरह प्रतिबंधित है। वैकल्पिक मार्गों जैसे डालीगंज क्रॉसिंग से चौराहा नंबर 8, आईER चौराहा, और चौक मेडिकल क्रॉस के रास्ते वाहनों को डायवर्ट किया गया है। आपातकालीन वाहनों जैसे एंबुलेंस और फायर सर्विस को प्रतिबंधित मार्गों पर अनुमति दी गई है।
नवाबी परंपरा का प्रतीक

यह जुलूस नवाब मोहम्मद अली शाह के दौर से चली आ रही परंपरा का हिस्सा है, जिसमें नवाबी प्रतीकों जैसे शाही जरी, हाथी, घोड़े, और बैंड-बाजे शामिल हैं। इस बार की शाही जरी में बड़े इमामबाड़े की स्थापत्य छवि को दर्शाया गया है, जिसे कारीगर वसीम और उसके भाई नसीम ने मिलकर तैयार किया है। इस बार नसीम के नाम से टेंडर पास हुआ था,जबकि पहले वसीम के नाम से टेंडर पास होता आ रहा था। यह ज़री 17 फीट लंबी और 50 किलोग्राम वजनी है, जबकि मोम की जरी 22 फीट ऊंची और 10 क्विंटल वजनी है।

लखनऊ की यह गंगा-जमुनी तहजीब और नवाबी विरासत का प्रतीक जुलूस न केवल शिया समुदाय बल्कि विभिन्न धर्मों के लोगों को एकजुट करता है। जुलूस के मार्ग पर सबीलों का इंतजाम किया गया है, जहां अकीदतमंदों को शरबत और हिस्सा बांटा जा रहा है।

आगामी आयोजन

मोहर्रम की पहली तारीख से 9 तारीख तक शहर के विभिन्न इमामबाड़ों में मजलिसों का आयोजन होगा। 6 जुलाई को यौम-ए-आशूरा के दिन शिया समुदाय मातम और मजलिस के साथ कर्बला के शहीदों को याद करेगा, जबकि सुन्नी समुदाय शहादतनामा पढ़ेगा।
यह जुलूस लखनऊ की सांस्कृतिक और धार्मिक एकता का प्रतीक है, जो हर साल हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को श्रद्धांजलि देता है।

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