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लखनऊ में हजरत इमाम सय्यद ए सज्जाद अस की विलादत पर 70 साल पुरानी तरही महफिल का भव्य आयोजन,शायरों ने पेश किए तरही कलाम

लखनऊ, 7 नवंबर। हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साहबजादे हजरत सय्यद ए सज्जाद अलैहिस्सलाम की विलादत-ए-पुरनूर के मुबारक मौके पर शहर भर में जश्न का माहौल रहा। विभिन्न इबादतगाहों में महफिल-ए-मिलाद का आयोजन हुआ तो घर-घर में इमाम की विलादत की खुशी में नजर और लंगर का एहतेमाम किया गया।
इसके अलावा तरही और गैर-तरही महफिलों का सिलसिला भी जारी रहा। लखनऊ के शिया बाहुल्य इलाकों को दुल्हन की तरह सजाया गया। अलग-अलग स्थानों पर हुई इन महफिलों और नजरों में लोगों ने शिरकत की और अपने इमाम की विलादत की खुशी में एक-दूसरे को मुबारकबाद पेश की। इसी सिलसिले में नखास इलाके
में स्थित प्रोफेसर जिया नौनहरवी साहब के घर में हर साल की तरह इस बार भी तरही महफिल का भव्य आयोजन हुआ। महफिल पूरी शान-ओ-शौकत के साथ संपन्न हुई।
लोगों का कहना है कि इस महफिल के आयोजन को करीब 70 वर्ष हो चुके हैं और इन सात दशकों में लखनऊ के बड़े-बड़े नामी शायरों ने इसमें शिरकत की है। इस रिवायत को आगे बढ़ाते हुए प्रोफेसर जिया नौनहरवी साहब के फरजंदान ने इस परंपरा को कायम रखा।
कल हुई महफिल शाम करीब 8:00 बजे शुरू हुई और रात 12:00 बजे से पहले खत्म हो गई। महफिल में लगभग 30 शायरों ने तरही कलाम पेश किया। महफिल का आगाज तिलावत-ए-हदीस-ए-किसा से कम्बर अली ने किया।
इसके बाद इब्ने हसन सल्लल्लाहु ने अपने कलाम से महफिल का आगाज किया। फिर नातिक नौगांवी साहब के कलाम को मोहम्मद वली हसन सल्लल्लाहु ने पढ़कर महफिल को आगे बढ़ाया। इसके बाद उभरते शायर आमिर लखनवी ने अपने कलाम से समीईन को दाद व तहसीन देने पर मजबूर कर दिया। फिर कम्बर अली साहब ने भी तरही कलाम पेश किया जिस पर श्रोताओं ने खूब सराहा।
इसके बाद कौसर बुतराबी ने बेहतरीन कलाम पेश किया। फिर एक बड़ा नाम कौसर रिजवी का सामने आया। लखनऊ में कौसर रिजवी साहब ने अपनी शायरी से जिस तेजी से पहचान बनाई, शायद ही किसी और ने इतनी जल्दी बनाई हो। कौसर रिजवी ने भी अपना कलाम पेश किया और लोगों ने उन्हें खूब दाद-ओ-तहसीन से नवाजा।
कौसर रिजवी साहब के बाद हैदर लखनवी ने अपना कलाम पेश किया। फिर कारी फुरकान लखनवी साहब ने अपने खास अंदाज में तरही कलाम बारगाह-ए-सय्यद ए सज्जाद अलैहिस्सलाम में पेश किया। फुरकान लखनवी के बाद शायर जाफर लखनवी ने बेहतरीन कलाम समीईन की समाअत के हवाले किया।
इसके बाद मौलाना काजिम इलाहाबादी साहब ने तरही कलाम पेश किया और लोगों ने उन्हें भी खूब दाद-ओ-तहसीन से नवाजा। काजिम साहब के बाद मौलाना अस्करी साहब ने अपने खास अंदाज में तरही कलाम पेश किया। मौलाना के बाद फैजान जाफर ने अपने तरही कलाम से खूब तारीफ बटोरी।
फैजान जाफर के बाद शूमूम आरफी साहब ने बेहतरीन शेर पेश किए। इनके बाद तनवीर बहराइची ने तरही कलाम से महफिल में चार चांद लगा दिए। लोगों ने खूब सराहा और जमकर दाद-ओ-तहसीन से नवाजा। तनवीर साहब के बाद ताहिर लखनवी ने बेहतरीन कलाम पेश किया।
ताहिर लखनवी साहब के बाद तय्यब लखनवी ने अपने मुनफरिद अंदाज में कलाम पेश किया जिसे सुनकर लोगों ने खूब दाद-ओ-तहसीन से नवाजा। इनके बाद जकी भारती ने तरही कलाम पेश करते हुए दाद-ओ-तहसीन हासिल की। जकी भारती के बाद कुमैल इलाहाबादी ने अपने मकसूद अंदाज में कलाम पेश किया और लोगों ने खूब सराहा।
कुमैल इलाहाबादी के बाद मुख्तार लखनवी ने अपना कलाम पेश किया और दाद-ओ-तहसीन से नवाजे गए। इनके बाद फिदवी नकवी ने तरही कलाम पेश किया। फिर हबीब शा, आबिद नजर, शकील उतरौलवी, फैयाज लखनवी, जावेद बरकी, साहबा जरवली, नासिर जरवली, नय्यर मजीदी साहब, एजाज जैदी साहब और मकता-ए-महफिल प्रोफेसर अजीज बनारसी साहब ने भी तरही कलाम पेश किया और खूब दाद-ओ-तहसीन हासिल की।
शायरी के सिलसिले के बाद मौलाना मुतक्की जैदी साहब ने महफिल को खिताब करते हुए चौथे इमाम सय्यद ए सज्जाद अलैहिस्सलाम की शान में तकरीर की। तकरीर में उन्होंने कहा कि यूं तो बारह इमाम हैं लेकिन सय्यद सज्जाद अलैहिस्सलाम को सज्जादीन का लकब मिला। उन्होंने कहा कि कैदखाने और मुसीबत के दौर में भी इमाम ने कोई सजदा कजा नहीं होने दिया। ऐसा वक्त जहां लोग अपने अपनों को भूल जाते हैं, वहां भी इमाम ने अल्लाह की इबादत की और उसकी बारगाह में सर झुकाए रखा। इसी तरह मौलाना ने चौथे इमाम की फजीलत बयान की।
इब्ने हसन सल्लल्लाहु ने जब ये शेर पढ़ा:
इतना सन्नाटा है दरबार में खुतबों के सबब।
जैसे जिंदा ही नहीं कोई सिवाए सज्जाद।
तो श्रद्धालुओं ने जमकर प्रशंसा की।
इसके बाद मोहम्मद वली हसन सल्लल्लाहु ने ये शेर सुनाया:
लंगर कमर में पांव में बेड़ी गले में तौक।
जेवर हैं कितने आबिद ए बीमार के लिए।
तो खूब सराहा गया।
आमिर लखनवी ने बेहतरीन कलाम पेश किया जिसमें उनका ये शेर:
मकतल को लिख दिया है बहत्तर सरों के नाम।
दो नाम शह ने रखे हैं दरबार के लिए।
पर समीईन ने खूब दाद-ओ-तहसीन से नवाजा।
कम्बर अली का ये शेर:
महशर बपा है खुत्बा ए आबिद से शाम में।
आबिद का खुत्बा मौत है अगियार के लिए।
खूब सराहा गया।
कौसर बुतराबी का ये शेर:
आबिद सफर में है वो कदम आ के चूम लें।
मौका है फूल बनने का ये खार के लिए।
ने खूब तारीफें बटोरीं।
कौसर रिजवी के कई शेरों की प्रशंसा हुई, जिनमें ये मतला:
मकतल में जान देते हैं दस्तर के लिए।
इज्जत अहम है साहिबे किरदार के लिए।
बहुत कामयाब रहा।
हैदर लखनवी का ये शेर:
जो कुछ लिखा है उससे ज्यादा है फिक्र में।
अल्फाज कम हैं इश्क के इजहार के लिए।
को लोगों ने खूब सराहा।
फुरकान लखनवी का ये शेर:
आबिद के दर के जर्रे बहुत काम आए हैं।
सूरज तेरी जबीने जियाबार के लिए।
को भी खूब दाद-ओ-तहसीन से नवाजा गया।
जाफर लखनवी का ये शेर:
जंजीरें खोलने पड़ी करना पड़ा रिहा।
कुछ फैसले यजीद ने थक हार के लिए।
बहुत कामयाब हुआ, समीईन ने कई बार पढ़वाया।
मौलाना काजिम इलाहाबादी का ये शेर:
शब्बीर के मकान में तारों का है नुजूल।
राहें सजी हैं काफिला सालार के लिए।
मौलाना अस्करी साहब का ये मतला:
अल्फाज चाहिए तो जो अशआर के लिए।
कुरआन से सब आपके मेयार के लिए।
ने खूब तारीफें बटोरीं।
फैजान जाफर का ये शेर:
ये रौशनाई अश्कों की तूने बनाई है।
कार्बोबला की सुर्खिये अखबार के लिए।
पर खूब दाद-ओ-तहसीन से नवाजा गया।
शूमूम आरफी साहब का ये शेर:
असवद भी बेकरार है काबा भी मुन्तजिर।
अए वक्त के अली तेरे दीदार के लिए।
तनवीर बहराइची साहब का ये मतला:
आबिद की मदहा खुद मेरे मेयार के लिए।
पैमाना ए शऊर है अशआर के लिए।
ताहिर लखनवी साहब का ये शेर:
नूर ए जमाल फैला है आबिद का हर तरफ।
हूरो ओ मलक सब आए हैं दीदार के लिए।
तैयब लखनवी साहब का ये शेर:
लाया हूं शहर ए इल्म से लफ्जों का काफिला।
आबिद तुम्हारी मदहा के अखबार के लिए।
जकी भारती साहब का ये शेर:
शमशीर ओ तीर ओ नेजा ओ खंजर ये फौजे शाम।
कुछ भी नहीं है आबिद ए बीमार के लिए।
कुमैल इलाहाबादी का ये शेर:
मद्दाह तहनियत के कसीदों से दर पा हैं।
आमद के शेर आमदे सरकार के लिए।
मुख्तार लखनवी का ये शेर:
आओ चलें के पेश करें तहनियत के फूल।
महफिल सजी है आबिदे बीमार के लिए।
फिदवी नकवी साहब का ये शेर:
मजलिस भी और हजरत ए आबिद का जश्न भी।
बख्शिश का है मकाम गुनाहगार के लिए।
हबीब शा साहब का ये शेर:
दुनिया की गुफ्तगू का इरादा न कीजिए।
महफिल सजी है आबिद ए बीमार के।
आबिद नजर साहब का ये शेर:
ऐ बाब ए इल्म दीजिए लफ्जों की मुझको भीख।
चौथे अली की शान में अशआर के लिए।
शकील उतरौलवी साहब का ये शेर:
आबिद बचा के ले गए कुल मकसदे हुसैन।
जंजीर ओ तौक छोड़ दी दरबार के लिए।
फैयाज लखनवी साहब का ये शेर:
खुतबे दिए हैं जैनबो आबिद ने इस तरह।
कुछ भी न छोड़ा जुल्म की गुफ्तार के लिए।
जावेद बरकी साहब का ये शेर:
ईसार, सब्र, शुक्र, वफा और सुकूने नफ्स।
औसाफ ये हैं साहिबे किरदार के लिए।
सहबा जरवली साहब का ये शेर:
अश्कों ने जंग जीत मैदाने सब्र में।
शमशीर रखी रह गई दीदार के लिए।
नासिर जरवली साहब का ये शेर:
रुख का तवाफ करके निगाहें हुसैन ने।
बोसे जमाले आबिदे बीमार के लिए।
नय्यर मजीदी साहब का ये शेर:
अकबर के हुस्न ने उसे यसरिब बुला लिया।
घर से जो निकला मिस्र के बाजार के लिए।
एजाज जैदी साहब का ये शेर:
आबिद बरहना पा है करे भी तो क्या करे।
एक मसअला है राह के हर खार के लिए।
मकता-ए-महफिल प्रोफेसर अजीज बनारसी साहब का ये शेर:
था कौन जो उठता भी इश्के खुदा का बोझ।
हक ने चुना हुसैन को इस भार के लिए।
को लोगों ने खूब सराहा और जमकर दाद-ओ-तहसीन से नवाजा।
इनके बाद मौलाना मुतक्की जैदी साहब ने महफिल को खिताब किया।

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