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लखनऊ में मोहर्रम की तीसरी तारीख पर मजलिसों का सिलसिल जारी,हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत को श्रद्धालुओं ने किया याद

लखनऊ, 29 जून। मोहर्रम की तीसरी तारीख के अवसर पर लखनऊ के विभिन्न इबादतगाहों, इमामबाड़ों और धार्मिक स्थलों में कर्बला की मार्मिक घटनाओं के चित्रण और मजलिसों का सिलसिला पूरे जोश के साथ जारी रहा। सुबह से देर रात तक आयोजित इन मजलिसों में शिया समुदाय के हजारों श्रद्धालुओं ने शिरकत की, हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके 71 साथियों की कुर्बानियों को याद किया, और अपने आंसुओं का नजराना हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) और उनकी माँ हजरत फातिमा जहरा (स.अ.) की खिदमत में पेश किया।

इसी क्रम में सुबह 11 बजे इमामबाड़ा गुरफरान माब में आयोजित मजलिस को शिया धर्मगुरु सय्यद कल्बे जब्बाद नक़वी ने खिताब करते हुए कर्बला की हकीकत को बड़े मार्मिक ढंग से बयान किया। इस मजलिस में श्रद्धालु गमगीन माहौल में एकत्र हुए और इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत की दास्तान को गहरे ध्यान और श्रद्धा के साथ सुना। मौलाना ने कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान और उनके हक के लिए खड़े होने की मिसाल को विस्तार से बताया, जिसे सुनकर श्रद्धालु भावुक हो उठे।

इसके बाद इमामबाड़ा आगा बाकर मैं आयोजित मजलिस को विख्यात किया धर्मगुरु मिशन जैदी ने किताब करते हुए हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की फजीलत का ज़िक्र किया। इस मजलिस में भी हजारों की तादाद में श्रद्धालुओं ने शिरकत की और हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) की कुर्बानियों का उल्लेख सुनकर आंसुओं के साथ पर्सा पेश किया। मौलाना ने इमाम हुसैन (अ.स.) के अमन और इंसाफ के पैगाम को रौशनी में लाते हुए उनके बलिदान की अहमियत पर जोर दिया।

इसके बाद इमामबाड़ा ज़की अली खान में भी मजलिसों का आयोजन हुआ। इन मजलिसों में अंजुमनों ने नौहाख्वानी, सीनाजनी के माध्यम से हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) से मोहब्बत व श्रद्धा का इजहार किया। इमामबाड़ा नाजिम साहब में मर्सिया ख्वानी की तीसरी मजलिस का आयोजन किया गया। श्रद्धालु इस दौरान गमजदा होकर इमाम हुसैन (अ.स.) की शहादत पर गिरिया करते रहे।

मदरसा ए नाज़मियां में आयतुल्लाह हमीदुल हसन का खिताब

मदरसा नाज़मियां में हर साल की तरह इस बार भी आयतुल्लाह हमीदुल हसन ने मजलिस को खिताब किया। इस मजलिस में हजारों श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया और कर्बला के शहीदों को याद करते हुए अपने जज्बात का इजहार किया। आयतुल्लाह ने इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान को इंसानियत के लिए एक मिसाल बताया और उनके दिखाए रास्ते पर चलने की प्रेरणा दी। अंजुमनों ने नौहाख्वानी और सीनाजनी के जरिए हजरत इमाम हुसैन (अ.स.) की याद में अपने जज्बात का इज़हार किया।

शहर में सामाजिक व्यवस्थाएँ और एकता का प्रदर्शन

लखनऊ की सड़कों पर कर्बला की याद में जगह-जगह ठंडे पानी, शरबत और खाने-पीने की चीजों के स्टॉल लगाए गए। भूखे लोगों के लिए तबर्रुक और खाने का वितरण किया गया, जबकि धूप से बचाव के लिए टेंट और श्रद्धालुओं के आराम के लिए कुर्सियों की व्यवस्था की गई। ये सभी व्यवस्थाएँ श्रद्धालुओं की सुविधा और उनके जज्बात को सम्मान देने के लिए की गई थीं।

इमाम हुसैन (अ.स.) का पैगाम: हक और इंसाफ

मजलिसों में वक्ताओं ने इमाम हुसैन (अ.स.) के पैगाम को विस्तार से बयान किया। उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) का पैगाम किसी एक फिरके तक सीमित नहीं है। जो भी हक का साथ देता है, वह हुसैनी है। कर्बला में इमाम हुसैन (अ.स.) ने फजर की नमाज अदा की, लेकिन उनके खिलाफ यजीद का लश्कर भी नमाज पढ़ रहा था। युद्ध शुरू होने पर यह साफ हो गया कि हक इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके 71 साथियों के साथ था, जबकि 9 लाख का लश्कर बातिल की राह पर था। वक्ताओं ने जोर देकर कहा कि जो आतंकवाद और बातिल का समर्थन करता है, वह कभी हुसैनी नहीं हो सकता।
इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपनी शहादत से अल्लाह के दीन को जिंदा रखा और अमन, इंसाफ और इंसानियत का पैगाम दिया। वक्ताओं ने बताया कि कर्बला की जंग ने साफ कर दिया कि हक और बातिल में फर्क नमाज पढ़ने से नहीं, बल्कि अमल और इरादों से होता है। इमाम हुसैन (अ.स.) ने अपने 71 साथियों के साथ हक की राह पर चलकर बातिल के खिलाफ जंग लड़ी और दुनिया को दिखाया कि सच्चाई और इंसाफ की राह पर कुर्बानी देने से बड़ा कोई धर्म नहीं।

श्रद्धालुओं का एकता और भाईचारे का संदेश

श्रद्धालुओं ने एकता और भाईचारे का संदेश देते हुए कहा कि इमाम हुसैन (अ.स.) से मोहब्बत करने वाला हर शख्स, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय का हो, हक की राह पर है। जो लोग यजीद की तरह बातिल और आतंकवाद की हिमायत करते हैं, वे इमाम हुसैन (अ.स.) के दुश्मन हैं। इस दौरान शिया और सुन्नी समुदाय के लोग एक साथ मजलिसों में शामिल हुए और इमाम हुसैन (अ.स.) के पैगाम को फैलाने का संकल्प लिया।
मोहर्रम की तीसरी तारीख का यह आयोजन न केवल धार्मिक महत्व का था, बल्कि सामाजिक एकता और भाईचारे को बढ़ावा देने वाला भी साबित हुआ। लखनऊ के लोग एक जगह से दूसरी जगह मजलिसों में शिरकत करते रहे और अपने आंसुओं के नजराने के साथ इमाम हुसैन (अ.स.) और हजरत फातिमा जहरा (स.अ.) की खिदमत में अपनी श्रद्धा अर्पित की।

इमाम हुसैन (अ.स.) का पैगाम आज भी प्रासंगिक

लखनऊ में मोहर्रम की तीसरी तारीख का यह आयोजन इमाम हुसैन (अ.स.) के बलिदान और उनके पैगाम को याद करने का एक अवसर था। श्रद्धालुओं ने न केवल उनकी शहादत को याद किया, बल्कि उनके दिखाए रास्ते पर चलने का भी प्रण लिया। इमाम हुसैन (अ.स.) का पैगाम आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जितना 14 सौ साल पहले था। उनका बलिदान हमें सिखाता है कि हक और इंसाफ के लिए खड़ा होना हर इंसान का फर्ज है, चाहे वह किसी भी धर्म या समुदाय से हो।

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