HomeArticleलखनऊ में प्रतिबंधित चाइनीज मांझे का कहर: दुर्घटनाएं और चुनौतिया

लखनऊ में प्रतिबंधित चाइनीज मांझे का कहर: दुर्घटनाएं और चुनौतिया

ज़की भारतीय

लखनऊ,20 मई। उत्तर प्रदेश की राजधानी, अपनी सांस्कृतिक विरासत और नवाबी शान के लिए जानी जाती है, लेकिन हाल के वर्षों में यह शहर एक खतरनाक चलन का गढ़ बन गया है—प्रतिबंधित चाइनीज मांझे का उपयोग। पतंगबाजी, जो एक पारंपरिक शौक और मनोरंजन का साधन है, इस मांझे के कारण मौत का पर्याय बन चुकी है। चाइनीज मांझा, जिसे नायलॉन मांझा या ग्लास-कोटेड मांझा भी कहा जाता है, अपनी अत्यधिक तेज धार के लिए कुख्यात है। यह धार तलवार से भी ज्यादा घातक हो सकती है, जो न केवल पतंग काटने में सक्षम है, बल्कि इंसानों और पक्षियों की जिंदगी भी छीन लेती है। लखनऊ में इस मांझे के कारण होने वाली दुर्घटनाओं ने कई परिवारों को तबाह कर दिया है, और प्रशासन की लचर कार्रवाई इस समस्या को और गंभीर बना रही है।

चाइनीज मांझा: एक जानलेवा शौक

चाइनीज मांझा एक सिंथेटिक धागा है, जिसमें कांच का पाउडर (ग्लास पाउडर) और अन्य तेज रसायनों का लेप होता है। इसका उद्देश्य अन्य पतंगों को हवा में काटना है, जो पतंगबाजी के प्रतिस्पर्धी पहलू को बढ़ाता है। हालांकि, इसकी तेज धार इसे बेहद खतरनाक बनाती है। यह मांझा इतना मजबूत और धारदार होता है कि यह त्वचा, मांस और यहां तक कि हड्डियों को भी आसानी से काट सकता है। लखनऊ में मकर संक्रांति , जमघट और स्वतंत्रता दिवस जैसे अवसरों पर पतंगबाजी का जोश चरम पर होता है, और यही वह समय होता है जब चाइनीज मांझे का उपयोग सबसे ज्यादा बढ़ जाता है।लखनऊ के घनी आबादी वाले इलाकों जैसे चौक, वजीराबाद, हजरतगंज, और सआदतगंज इलाके में यह मांझा खुलेआम बिकता और उपयोग होता है। दुकानदार इसे चोरी-छिपे या कई बार खुल्लम-खुल्ला बेचते हैं, और खरीदार अपने शौक को पूरा करने के लिए इसे बिना सोचे-समझे खरीद लेते हैं। इस मांझे की कीमत सस्ती होने के कारण यह हर आयु वर्ग के लोगों, खासकर युवाओं में लोकप्रिय है। लेकिन इस सस्ते शौक की कीमत कई बार जिंदगियों से चुकानी पड़ती है।

लखनऊ में चाइनीज मांझे से दुर्घटनाएं

लखनऊ में चाइनीज मांझे के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या हर साल बढ़ रही है। कल ही एक घटना पुराने लखनऊ के रहने वाले शायर खुर्शीद फतेहपुरी के बेटे कौसेन हैदर के साथ घटी, जो कल शाम गोमतीनगर से अपने घर की तरफ लौट रहे थे। जिनकी मोटरसाइकिल चलाते समय गर्दन चाइनीज मांझे से कट गई। कटी पतंग का मांझा सड़क पर गिरा हुआ था, जो उनकी मोटरसाइकिल की रफ्तार के साथ उनकी गर्दन में फंस गया। जिससे वो मामूली रूप से घायल हो गए,अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां मामूली से ड्रेसिंग करके उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया। हालांकि यह तो मामूली घटना है। लेकिन अधिकतर घटनाएं कभी कभी मौत का रूप भी धारण कर लेती हैं।
कुछ वर्ष पहले काज़मैन रोड थाना सआदतगंज निवासी नाज मियां के साथ भी हो चुकी है। उनकी गर्दन पूरी तरह से कट गई थी,लाखों रूपए खर्च हुए और कई वर्षों के बाद वो स्वस्थ हो सके। इलाक़े का एक और युवक इसी तरह के हादसे का शिकार हुआ और उसकी जीवन लीला ही समाप्त हो गई। चौपटिया निवासी शाकिर की मौत भी मांझे के कारण हुई थी। ऐसी घटनाएं न केवल पीड़ितों के लिए, बल्कि उनके परिवारों के लिए भी मानसिक और आर्थिक त्रासदी बन जाती हैं। जनवरी 2025 में, एक अन्य घटना में रज्जन खान नामक युवक का गला चाइनीज मांझे से कट गया। वह फ्लाईओवर पर मोटरसाइकिल से जा रहा था, जब अचानक मांझा उसकी गर्दन में फंस गया। राहगीरों ने उसे तुरंत केजीएमयू ट्रॉमा सेंटर पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने 15 टांके लगाकर उसकी जान बचाई। इस घटना ने एक बार फिर चाइनीज मांझे के खतरे को उजागर किया।

पक्षियों और पर्यावरण पर प्रभाव

चाइनीज मांझा न केवल इंसानों के लिए खतरा है, बल्कि पक्षियों और पर्यावरण के लिए भी घातक है। हर साल हजारों पक्षी इस मांझे में फंसकर घायल हो जाते हैं या मर जाते हैं। बिजली के तारों पर फंसा मांझा शॉर्ट सर्किट का कारण बनता है, जिससे बिजली आपूर्ति बाधित होती है। इसके अलावा, यह मांझा गैर-बायोडिग्रेडेबल होता है, जो पर्यावरण को दीर्घकालिक नुकसान पहुंचाता है।

प्रशासन की लचर कार्रवाई

चाइनीज मांझे पर सुप्रीम कोर्ट और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाया गया है, लेकिन इसका पालन न के बराबर हो रहा है। पुलिस और प्रशासन समय-समय पर दुकानों पर छापेमारी करता है और चाइनीज मांझा बेचने वालों को चेतावनी देता है, लेकिन यह कार्रवाई अस्थायी और अपर्याप्त साबित होती है। उदाहरण के लिए, जनवरी 2025 में रायबरेली के ऊंचाहार में एक_FWD: सिपाही की मौत के बाद पुलिस ने चाइनीज मांझा बेचने वालों के खिलाफ अभियान चलाया, लेकिन ऐसी कार्रवाइयां लखनऊ में नियमित नहीं हैं। प्रशासन की माने तो उसके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि चाइनीज मांझे का उपयोग घनी आबादी वाले इलाकों में होता है, जहां ड्रोन कैमरों से निगरानी करना मुश्किल है। अगर इन तथ्यों में दम है तो प्रशासन ये बताए, बिजली विभाग घनी आबादी में ड्रोन द्वारा बिजली चोरों को ड्रोन अपनी निगाहों में कैसे क़ैद करते हैं ? जिस तरह बिजली विभाग द्वारा तारों की जांच के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया जाता है, उसी तरह पतंगबाजी की निगरानी के लिए भी किया जा सकता है। इसके अलावा, मांझे की आपूर्ति पर पूरी तरह रोक लगाना चुनौतीपूर्ण है,लेकिन असंभव नहीं है ।

समाधान के उपाय

चाइनीज मांझे के खतरे को कम करने के लिए कुछ कदम भी उठाए जा सकते हैं।
कठोर कानूनी कार्रवाई: चाइनीज मांझा बेचने और उपयोग करने वालों के खिलाफ सख्त दंडात्मक कार्रवाई होनी चाहिए। दुकानदारों पर भारी जुर्माना और जेल की सजा दी जानी चाहिए।

जागरूकता अभियान: स्कूलों, कॉलेजों और समुदायों में चाइनीज मांझे के खतरों के बारे में जागरूकता फैलाई जानी चाहिए। सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया का उपयोग करके लोगों को सूचित किया जा सकता है।

वैकल्पिक मांझा: सूती धागे या बायोडिग्रेडेबल मांझे को बढ़ावा देना चाहिए, जो सुरक्षित और पर्यावरण के लिए हानिकारक न हो।

निगरानी और छापेमारी: पुलिस और प्रशासन को नियमित रूप से बाजारों में छापेमारी करनी चाहिए और मांझे की आपूर्ति श्रृंखला को तोड़ना चाहिए।

सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को पतंगबाजी के लिए खुले मैदानों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, ताकि घनी आबादी वाले क्षेत्रों में दुर्घटनाएं कम हों।

पतंगबाजी एक खूबसूरत परंपरा और शारीरिक व्यायाम का साधन हो सकता है, लेकिन चाइनीज मांझे ने इसे मौत का खेल बना दिया है। लखनऊ में इस मांझे के कारण होने वाली दुर्घटनाएं न केवल दुखद हैं, बल्कि समाज और प्रशासन के लिए एक चेतावनी भी हैं। यह समय है कि हम इस जानलेवा शौक को नियंत्रित करें और सुरक्षित विकल्पों को अपनाएं। यदि प्रशासन, दुकानदार, और आम नागरिक मिलकर काम करें, तो हम लखनऊ की गलियों को फिर से सुरक्षित और खुशहाल बना सकते हैं। आप भी इस लेख को अधिक से अधिक लोगों को साझा करें ताकि लोगों में जागरूकता पैदा हो।

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