ज़की भारतीय
लखनऊ, 2 जुलाई। दिल्ली में वायु प्रदूषण को कम करने के लिए एक नया नियम लागू किया गया है, जिसके तहत 15 साल से पुरानी पेट्रोल गाड़ियों और 10 साल से पुराने डीजल वाहनों को पेट्रोल पंपों पर ईंधन नहीं दिया जाएगा। यह नियम 1 जुलाई 2025 से प्रभावी हो चुका है। इस नियम ने न केवल दिल्ली, बल्कि लखनऊ, कानपुर, आगरा, और वाराणसी जैसे उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों में भी बहस छेड़ दी है। सवाल यह उठता है कि क्या यह नियम वास्तव में प्रदूषण को कम करने में प्रभावी होगा, या यह ऑटोमोबाइल कंपनियों को लाभ पहुँचाने और आम जनता पर आर्थिक बोझ डालने का एक सुनियोजित खेल है?
नियम का विवरण और लागू होने की प्रक्रिया
दिल्ली परिवहन विभाग और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने यह नियम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में वायु प्रदूषण के बढ़ते स्तर को नियंत्रित करने के लिए लागू किया है। दिल्ली परिवहन विभाग के आयुक्त अशोक कुमार के अनुसार, सभी पेट्रोल पंपों को निर्देश दिए गए हैं कि वे 15 साल से पुरानी पेट्रोल गाड़ियों और 10 साल से पुराने डीजल वाहनों को ईंधन न दें। नियम का उल्लंघन करने वाले पेट्रोल पंप मालिकों पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना और लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई हो सकती है। इस नियम के तहत वाहनों की उम्र की जाँच उनके रजिस्ट्रेशन दस्तावेजों के आधार पर की जाएगी।लखनऊ में इस नियम की खबर ने स्थानीय वाहन मालिकों और ट्रांसपोर्टरों में हलचल मचा दी है। एक ट्रक ड्राइवर ने बताया कि उनका 12 साल पुराना डीजल ट्रक दिल्ली में अब ईंधन नहीं ले पाएगा, जिससे उनकी आजीविका पर सीधा असर पड़ेगा। गोमती नगर के सॉफ्टवेयर इंजीनियर राहुल मिश्रा ने कहा कि उनकी 2008 मॉडल की पेट्रोल कार अब दिल्ली में बेकार हो जाएगी, क्योंकि वह अक्सर काम के सिलसिले में दिल्ली जाते हैं।
क्या प्रदूषण के लिए सिर्फ पुरानी गाड़ियाँ दोषी हैं?
इस नियम ने कई सवाल खड़े किए हैं। यदि प्रदूषण को नियंत्रित करना उद्देश्य है, तो क्या केवल पुरानी गाड़ियाँ ही प्रदूषण की जिम्मेदार हैं? लखनऊ के एक ऑटोमोबाइल मैकेनिक ने बताया कि पुरानी गाड़ियों में यदि रिंग, पिस्टन, या इंजन में कोई खराबी हो, तो उसे ठीक किया जा सकता है। क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय (RTO) और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के काउंटरों पर साइलेंसर के धुएँ की जाँच की जाती है, और प्रदूषण मानकों को पूरा करने वाली गाड़ियों को PUC (Pollution Under Control) प्रमाणपत्र दिया जाता है। फिर पुरानी गाड़ियों को पूरी तरह प्रतिबंधित करने का क्या औचित्य है?
लखनऊ विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के एक प्रोफेसर ने बताया कि प्रदूषण का मुख्य कारण केवल गाड़ियाँ नहीं हैं। उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों—लखनऊ, कानपुर, और आगरा में प्रदूषण के स्रोतों में औद्योगिक उत्सर्जन, निर्माण कार्य, और पेड़ों की कटाई भी शामिल हैं। कानपुर, जो देश के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक है, वहाँ की टैनरी और रासायनिक फैक्ट्रियाँ प्रदूषण का बड़ा कारण हैं। वाराणसी में गंगा के किनारे जलाए जाने वाले शवों से निकलने वाला धुआँ और धूल भी प्रदूषण का कारण है।
कंपनियों का खेल या जनता पर बोझ?
लखनऊ के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इस नियम को “ऑटोमोबाइल कंपनियों का खेल” करार दिया। उन्होंने कहा कि मारुति, महिंद्रा, और बजाज जैसी कंपनियाँ चाहती हैं कि हर 10-15 साल में लोग नई गाड़ियाँ खरीदें। यदि पुरानी गाड़ियों को स्क्रैप कर दिया जाएगा, तो लोग मजबूरन नई गाड़ियाँ खरीदेंगे, जिससे कंपनियों को भारी मुनाफा होगा। उन्होंने तर्क दिया कि यदि गाड़ी का धुआँ और प्रदूषण जाँचा जा सकता है, और मैकेनिक द्वारा इंजन या साइलेंसर को ठीक कर मानकों के अनुरूप लाया जा सकता है, तो पुरानी गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाना गरीब और मध्यम वर्ग के लोगों पर आर्थिक बोझ डालने जैsa है।लखनऊ के ऑटो रिक्शा चालक ने बताया कि उन्होंने ऑटो बैंक लोन के जरिए खरीदी थी। यदि इसे 15 साल बाद स्क्रैप करना पड़ेगा, तो उनकी आर्थिक स्थिति डगमगा जाएगी। भारत में औसत आयु 65 वर्ष है, और अधिकांश लोग 60 वर्ष की उम्र में रिटायर हो जाते हैं। ऐसे में, एक गाड़ी जो उनकी आजीविका का साधन है, उसे 15 साल बाद बेकार करना उनके लिए भारी नुकसान है। श्यामलाल ने कहा, “मैंने अपनी गाड़ी की हर साल जाँच कराई, और यह PUC प्रमाणपत्र के मानकों को पूरा करती है। फिर इसे क्यों बंद करना?”
प्रदूषण के अन्य स्रोत और सरकारी नीति की आलोचना
लखनऊ के पर्यावरण कार्यकर्ता के अनुसार, प्रदूषण का कारण केवल गाड़ियाँ नहीं हैं। लखनऊ में गोमती नदी के किनारे अवैध डंपिंग, औद्योगिक कचरा, और निर्माण धूल भी प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। कानपुर में चमड़ा उद्योग और रासायनिक कारखाने हवा और पानी दोनों को प्रदूषित कर रहे हैं। आगरा में पर्यटकों की भीड़ और डीजल जनरेटर ताजमहल को नुकसान पहुँचा रहे हैं। वाराणसी में धार्मिक गतिविधियों और खुले में जलाए जाने वाले कचरे से धुआँ फैल रहा है।यदि सरकार प्रदूषण को नियंत्रित करने में गंभीर है, तो वह फैक्ट्रियों, डीजल जनरेटरों, और कमर्शियल डीजल वाहनों पर सख्ती क्यों नहीं करती? कमर्शियल थ्री-व्हीलर और फोर-व्हीलर, जो डीजल से चलते हैं, बिना किसी सख्त जाँच के सड़कों पर दौड़ रहे हैं। सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस नीति लागू नहीं की है। यदि सभी वाहनों को इलेक्ट्रिक कर दिया जाए, या पेट्रोल-डीजल वाहनों का उत्पादन बंद कर दिया जाए, तो प्रदूषण को नियंत्रित करना आसान होगा।
जनता की आवाज़ और कानूनी कार्रवाई की माँग
लखनऊ के एक सामाजिक कार्यकर्ता ने इस नियम को “कंपनियों को लाभ पहुँचाने का षड्यंत्र” करार दिया। उन्होंने कहा कि यदि यह नियम वापस नहीं लिया गया, तो वह जनहित याचिका दायर कर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में इसके खिलाफ कार्रवाई की माँग करेंगे। उन्होंने तर्क दिया कि यदि गाड़ी का धुआँ जाँचा जा सकता है और मैकेनिक द्वारा ठीक किया जा सकता है, तो पुरानी गाड़ियों को प्रतिबंधित करना अन्यायपूर्ण है।लखनऊ के निवासी एक दुकानदार ने कहा कि सरकार का यह नियम गरीब और मध्यम वर्ग को निशाना बना रहा है। उन्होंने बताया कि उनके पास 2009 मॉडल की मोटरसाइकिल है, जिसे वे अपनी दुकान आने और जाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। यदि इसे स्क्रैप करना पड़ा, तो उन्हें नई गाड़ी खरीदने के लिए फिर से लोन लेना पड़ेगा, जो उनकी आर्थिक स्थिति पर भारी पड़ेगा।
प्रदूषण के अन्य कारण और समाधान
लखनऊ के पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. अनिल शर्मा ने बताया कि प्रदूषण का एक बड़ा कारण पेड़ों की कटाई और कार्बन डाइऑक्साइड का बढ़ता स्तर है। लखनऊ में गोमती नगर, इंदिरा नगर, और आलमबाग जैसे क्षेत्रों में हरियाली कम हो रही है। कानपुर में औद्योगिक कचरे और धूल से हवा की गुणवत्ता लगातार खराब हो रही है। आगरा में पर्यटकों की भीड़ और डीजल जनरेटरों से निकलने वाला धुआँ ताजमहल को नुकसान पहुँचा रहा है। वाराणसी में गंगा के किनारे अवैध डंपिंग और धार्मिक गतिविधियों से प्रदूषण बढ़ रहा है।डॉ. शर्मा ने सुझाव दिया कि सरकार को पुरानी गाड़ियों पर प्रतिबंध लगाने के बजाय, कुछ अन्य कदम उठाने चाहिए।
जिनमें इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा: सभी टू-व्हीलर, थ्री-व्हीलर, और फोर-व्हीलर को इलेक्ट्रिक बनाने के लिए कंपनियों पर दबाव डाला जाए।
फैक्ट्रियों पर सख्ती: औद्योगिक उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए कड़े नियम लागू किए जाएँ।
हरियाली बढ़ाना: शहरों में पेड़ों की संख्या बढ़ाई जाए ताकि कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर कम हो।
PUC जाँच को सख्त करना: पुरानी गाड़ियों की नियमित जाँच सुनिश्चित की जाए, और जो गाड़ियाँ मानकों को पूरा करें, उन्हें चलने की अनुमति दी जाए वगैरह शामिल है।
यह नियम न केवल दिल्ली, बल्कि लखनऊ, कानपुर, आगरा, और वाराणसी जैसे शहरों के वाहन मालिकों को प्रभावित करेगा। लखनऊ के निवासी इस नियम को गरीब और मध्यम वर्ग के खिलाफ मान रहे हैं। सवाल यह है कि यदि प्रदूषण नियंत्रण का लक्ष्य है, तो सरकार केवल पुरानी गाड़ियों को निशाना क्यों बना रही है? फैक्ट्रियाँ, डीजल जनरेटर, और कमर्शियल वाहन भी प्रदूषण के बड़े स्रोत हैं। ऑटोमोबाइल कंपनियों को लाभ पहुँचाने के लिए पुरानी गाड़ियों को स्क्रैप करना जनता के साथ अन्याय है। लखनऊ के लोग इस नियम के खिलाफ आवाज़ उठा रहे हैं और माँग कर रहे हैं कि सरकार प्रदूषण के सभी स्रोतों पर समान रूप से कार्रवाई करे।