ज़की भारतीय
सितंबर 2025 में नेपाल की सड़कों पर भड़का हिंसक विद्रोह विश्व भर में चर्चा का विषय बन गया। यह विद्रोह, जो शुरू में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के विरोध में भड़का, जल्द ही एक व्यापक जन-आंदोलन में बदल गया। काठमांडू की सड़कों से लेकर ग्रामीण इलाकों तक, युवाओं ने सरकार के खिलाफ अपनी नाराज़गी को खुलकर व्यक्त किया। इस विद्रोह ने न केवल नेपाल की राजनीतिक अस्थिरता को उजागर किया, बल्कि यह भी दिखाया कि कैसे एक छोटा-सा निर्णय, जैसे सोशल मीडिया पर प्रतिबंध, दशकों से दबी असंतुष्टि को विस्फोटक रूप दे सकता है। इस लेख में हम नेपाल में इस विद्रोह के कारणों, प्रभावों और इसके भविष्य के निहितार्थों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।
विद्रोह का तात्कालिक कारण: सोशल मीडिया पर प्रतिबंध
4 सितंबर 2025 को नेपाल सरकार ने 26 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, जिनमें टिकटॉक, फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर (अब X) शामिल थे, पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया। सरकार ने इस निर्णय को “सामाजिक सौहार्द बनाए रखने” और “फर्जी खबरों को रोकने” के लिए जरूरी बताया। लेकिन यह कदम युवा पीढ़ी के लिए एक चिंगारी साबित हुआ। नेपाल की कुल जनसंख्या का लगभग 55% हिस्सा (लगभग 1.6 करोड़ लोग) इंटरनेट का उपयोग करते है, और इनमें से आधे से अधिक लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं। खासकर जेनरेशन-जेड के लिए, सोशल मीडिया न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि अपनी आवाज़ उठाने, विचार साझा करने और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने का एक मंच भी है।
प्रतिबंध के बाद, काठमांडू और पोखरा जैसे शहरों में हजारों युवा सड़कों पर उतर आए। नारों, पथराव और हिंसक प्रदर्शनों ने जल्द ही देश को अस्थिर कर दिया। प्रदर्शनकारियों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध को वे सरकार की उस मानसिकता का प्रतीक मानते थे, जो युवाओं की आवाज़ को दबाना चाहती थी। लेकिन यह केवल शुरुआत थी; असल में, यह विद्रोह दशकों से चली आ रही गहरी समस्याओं का परिणाम
था।
गहरे कारण: भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और टूटी उम्मीदें
नेपाल का इतिहास राजनीतिक अस्थिरता, क्रांतियों और अधूरे वादों से भरा पड़ा है। 2008 में राजशाही के अंत और गणतंत्र की स्थापना के बाद देश ने एक नई शुरुआत की उम्मीद की थी। लेकिन 17 साल बाद भी, नेपाल की जनता को वह बदलाव नहीं मिला, जिसका वादा किया गया था। 1996-2006 का माओवादी विद्रोह, जिसमें लगभग 17,000 लोग मारे गए थे, ने सामाजिक और आर्थिक समानता का सपना दिखाया था। लेकिन वह सपना अधूरा ही रहा।
1. भ्रष्टाचार और नेपोटिज़्म
नेपाल की राजनीति में भ्रष्टाचार और परिवारवाद की जड़ें गहरी हैं। शीर्ष नेताओं और उनके परिवारों पर सरकारी संसाधनों के दुरुपयोग और निजी लाभ के लिए सत्ता का उपयोग करने के आरोप लगते रहे हैं। चाहे वह नेपाली कांग्रेस हो, कम्युनिस्ट पार्टी हो, या अन्य छोटे दल, सभी पर भ्रष्टाचार के दाग हैं। आम जनता, खासकर युवा, यह देखकर निराश हैं कि सत्ता का लाभ केवल एक छोटे से समूह तक सीमित है। सरकारी नौकरियाँ, ठेके और अवसर अक्सर उन लोगों को मिलते हैं, जो सत्ताधारी नेताओं के करीबी हैं।
2. आर्थिक संकट और बेरोज़गारी
नेपाल की अर्थव्यवस्था लंबे समय से संकट में है। विश्व बैंक के अनुसार, नेपाल की प्रति व्यक्ति आय दक्षिण एशिया के सबसे निचले स्तरों में से एक है। युवाओं में बेरोज़गारी की दर 20% से अधिक है, और लाखों युवा बेहतर अवसरों की तलाश में खाड़ी देशों, मलेशिया और दक्षिण कोरिया जैसे देशों में प्रवास करने को मजबूर हैं। जो लोग देश में रहते हैं, उन्हें महँगाई, कम मज़दूरी और अवसरों की कमी का सामना करना पड़ता है। इस आर्थिक निराशा ने युवाओं में सरकार के खिलाफ गुस्सा बढ़ाया।
3. अधूरी क्रांतियाँ और राजनीतिक अस्थिरता
2008 में राजशाही के अंत के बाद नेपाल ने कई सरकारें देखीं, लेकिन स्थिरता नहीं मिली। बार-बार सरकारें बदलती रहीं, और हर बार जनता को नए वादों के साथ धोखा मिला। माओवादी आंदोलन ने जो सामाजिक-आर्थिक बदलाव का सपना दिखाया था, वह पूरा नहीं हुआ। संविधान सभा के बाद 2015 में नए संविधान की घोषणा हुई, लेकिन इससे भी जातीय और क्षेत्रीय असमानताएँ खत्म नहीं हुईं। मधेसी और जनजातीय समुदायों ने संविधान को अपने खिलाफ बताया, जिससे और असंतोष फैला।
नेपाल का यह विद्रोह एक चेतावनी है कि दशकों से दबा असंतोष कभी भी विस्फोटक रूप ले सकता है। अगर सरकार भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी और असमानता जैसे मूल मुद्दों को हल नहीं करती, तो ऐसे विद्रोह बार-बार हो सकते हैं। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध जैसे निर्णय, जो सतही तौर पर छोटे लगते हैं, जनता की भावनाओं को भड़काने के लिए काफी हैं।
भ्रष्टाचार पर लगाम: सरकार को भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे। स्वतंत्र जाँच एजेंसियों को सशक्त करना और पारदर्शिता बढ़ाना जरूरी है।
आर्थिक सुधार: युवाओं के लिए रोज़गार सृजन, शिक्षा और कौशल विकास पर ध्यान देना होगा। छोटे और मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहन देना आर्थिक विकास को गति दे सकता है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: सोशल मीडिया जैसे मंचों पर अनावश्यक प्रतिबंध लगाने के बजाय, सरकार को इनका उपयोग जनता की आवाज़ सुनने के लिए करना चाहिए।
समावेशी नीतियाँ: मधेसी, जनजातीय और अन्य हाशिए पर पड़े समुदायों को मुख्यधारा में लाने के लिए समावेशी नीतियाँ बनानी होंगी।
नेपाल का सितंबर 2025 का विद्रोह एक सतही कारण (सोशल मीडिया प्रतिबंध) से शुरू हुआ, लेकिन इसकी जड़ें दशकों पुरानी समस्याओं में हैं। भ्रष्टाचार, बेरोज़गारी, और अधूरी क्रांतियों ने जनता, खासकर युवाओं, में गहरी निराशा पैदा की है। यह विद्रोह नेपाल की सरकार के लिए एक सबक है कि जनता की आवाज़ को अनसुना करना भारी पड़ सकता है। अगर नेपाल को स्थिरता और विकास की राह पर आगे बढ़ना है, तो उसे अपनी नीतियों में आमूल-चूल बदलाव करने होंगे। यह विद्रोह केवल एक चेतावनी है; असली बदलाव अभी बाकी है।