HomeWORLDट्रंप ने 19 वीं बार लिया भारत- पाकिस्तान युद्धविराम का श्रेय

ट्रंप ने 19 वीं बार लिया भारत- पाकिस्तान युद्धविराम का श्रेय

लखनऊ, 29 जून।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान के बीच युद्धविराम को लेकर विवादास्पद बयान दिया है। ट्रंप ने 19 वीं बार दावा किया कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच संभावित युद्ध को रोका। इस बार उन्होंने कहा, “जब मैं भारत-पाकिस्तान का समझौता करा रहा था, तब मैंने अपने वित्त मंत्री और कॉमर्स सेक्रेटरी से कहा कि भारत और पाकिस्तान के साथ सारे व्यापारिक समझौते रद्द कर दो। इसके बाद भारत और पाकिस्तान के नेताओं के फोन आए, उन्होंने पूछा- हम क्या करें? मैंने कहा- अगर युद्ध करोगे तो व्यापार नहीं होगा। और दोनों मेरी बात मान गए।”
ट्रंप का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब भारत ने बार-बार स्पष्ट किया है कि मई 2025 में हुए भारत-पाकिस्तान युद्धविराम में अमेरिका की कोई मध्यस्थता नहीं थी। भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने पहले ही ट्रंप के दावों को खारिज करते हुए कहा था कि युद्धविराम दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों (DGMO) के बीच द्विपक्षीय बातचीत के बाद हुआ, न कि किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से। भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने भी जी7 शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ट्रंप की बातचीत का हवाला देते हुए कहा कि भारत ने स्पष्ट किया था कि युद्धविराम में अमेरिका की कोई भूमिका नहीं थी।

ट्रंप की बार-बार बयानबाजी क्यों?

ट्रंप की बार-बार युद्धविराम का श्रेय लेने की कोशिश ने भारत में व्यापक बहस छेड़ दी है। विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप अपनी छवि को एक “शांति निर्माता” के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि वैश्विक मंच पर अपनी विदेश नीति को मजबूत दिखा सकें। अंतरराष्ट्रीय संबंधों की विशेषज्ञ स्वस्ति राव का कहना है, “ट्रंप को इतिहास की कम समझ है। वे रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान समझौता, और भारत-पाकिस्तान संघर्ष जैसे मुद्दों पर डील करवाकर श्रेय लेने की होड़ में रहते हैं।”
इसके अलावा, ट्रंप का यह बयान व्यापारिक दबाव को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की उनकी रणनीति को भी दर्शाता है। उन्होंने भारत और पाकिस्तान को व्यापार बंद करने की धमकी देने की बात कही, जिसे कई विश्लेषकों ने भारत की संप्रभुता पर सवाल उठाने वाला माना है। ट्रंप ने यह भी दावा किया कि भारत के साथ एक बड़ा व्यापार समझौता होने वाला है, जिसे ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के अजय श्रीवास्तव ने सकारात्मक माना, लेकिन साथ ही चेतावनी दी कि अमेरिका इस क्षेत्र में पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार मानता है।

आतंकवाद पर ट्रंप की नीति पर सवाल

ट्रंप के बयानों ने भारत में यह धारणा पैदा की है कि वे आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख नहीं अपना रहे। खासकर, अप्रैल 2025 में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद, जिसमें 26 पर्यटक मारे गए थे, भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू कर पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हमला किया। इस दौरान ट्रंप ने आतंकवाद के खिलाफ सख्त बयानबाजी तो की, लेकिन पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर के साथ उनकी क्रिप्टोकरेंसी फर्म के समझौते ने संदेह पैदा किया कि उनका रुख कारोबारी हितों से प्रेरित हो सकता है।
भारत में विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस ने ट्रंप के बयानों पर प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी की आलोचना की है। कांग्रेस प्रवक्ता जयराम रमेश ने कहा, “10 मई के बाद से ट्रंप ने 19 बार युद्धविराम का दावा किया है। यह भारत की विदेश नीति और आत्मसम्मान पर सवाल उठाता है।” विपक्ष का कहना है कि भारत को स्पष्ट रूप से कहना चाहिए कि न तो पीएम मोदी ने और न ही किसी भारतीय अधिकारी ने ट्रंप को फोन कर “हम क्या करें?” पूछा था।

भारत की स्थिति और जनता की मांग

पहलगाम हमले के बाद भारतीय जनता में गुस्सा था कि पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कड़ा जवाब देना चाहिए। कई लोगों का मानना था कि पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को पूरी तरह नष्ट करना चाहिए था और विश्व स्तरीय जांच समिति गठित कर आतंकियों को भारत को सौंपने की मांग करनी चाहिए थी। जनता का एक वर्ग मानता है कि भारत ने बहुत जल्दी युद्धविराम स्वीकार कर लिया, जिसे सोशल मीडिया पर भी उठाया जा रहा है। कुछ यूजर्स ने ईरान के सुप्रीम लीडर अयातुल्लाह खामेनेई का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत को भी अमेरिकी दबाव में नहीं आना चाहिए था।

क्या होनी चाहिए थी कार्रवाई?

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को पाकिस्तान पर दबाव बनाकर आतंकियों की गिरफ्तारी या प्रत्यर्पण सुनिश्चित करना चाहिए था। इसके साथ ही, एक अंतरराष्ट्रीय जांच समिति का गठन कर पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों की जांच और भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए ठोस समझौता करना चाहिए था।

ट्रंप का बार-बार युद्धविराम का श्रेय लेना और व्यापारिक धमकी की बात करना भारत की संप्रभुता और आतंकवाद के खिलाफ उसकी लड़ाई पर सवाल उठाता है। भारत सरकार को इस पर स्पष्ट रुख अपनाने की जरूरत है, ताकि यह संदेश जाए कि भारत अपनी नीतियों पर अडिग है और किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता। साथ ही, जनता की भावनाओं को देखते हुए सरकार को आतंकवाद के खिलाफ और सख्त कदम उठाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों।

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