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इजरायल – ईरान युद्ध में दोनों देशों ने क्या खोया और क्या पाया ?

ज़की भारतीय
लखनऊ, 25 जून । ईरान और इजरायल के बीच 12 दिनों तक चले भीषण युद्ध का अंत एक सीजफायर के साथ हुआ। यह युद्धविराम अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और कतर की मध्यस्थता के बाद लागू हुआ। ईरान ने इस युद्ध में अकेले दम पर लड़ाई लड़ी और इजरायल को भारी नुकसान पहुंचाया, जबकि इजरायल ने अमेरिका के सैन्य और तकनीकी समर्थन के बल पर ईरान के खिलाफ हमले किए। सोशल मीडिया पर ईरान की शर्तों पर सीजफायर की बातें चल रही हैं, जिसमें उसने अपनी संप्रभुता और सम्मान को बनाए रखा।
इजरायल की रणनीति और अमेरिका का समर्थन
इजरायल ने इस युद्ध में अमेरिका के समर्थन का पूरा फायदा उठाया। उसने ईरान के परमाणु ठिकानों (फोर्डो, नतांज, अराक), सैन्य अड्डों, रक्षा मंत्रालय मुख्यालय, और सरकारी टेलीविजन चैनल के मुख्यालय को नष्ट किया। इजरायल ने अमेरिकी खुफिया जानकारी और हथियारों, जैसे कि आयरन डोम और साइबर युद्ध तकनीक, के दम पर ईरान के शीर्ष नेतृत्व को निशाना बनाया।
कासिम सुलेमानी (3 जनवरी 2020 को मारे गए) – कुद्स फोर्स के प्रमुख, जिनकी हत्या बगदाद में अमेरिकी ड्रोन हमले में हुई। इस हत्या ने ईरान को गहरी चोट पहुंचाई और 2025 के युद्ध में बदले की भावना को बढ़ावा दिया।
गुलाम अली राशिद – ईरान के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, 2025 में मारे गए।
अली शादमानी – ईरान के सेना प्रमुख, 2025 में मारे गए।
हुसैन सलामी – ईरानी रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के चीफ, 2025 में मारे गए।
तीन वरिष्ठ कमांडर – इस्फहान में परमाणु अनुसंधान केंद्र पर हमले में मारे गए।
कई परमाणु वैज्ञानिक – तेहरान में ऑपरेशन राइजिंग लायन के तहत मारे गए।
इजरायल के हमलों ने ईरान के परमाणु कार्यक्रम और सैन्य ढांचे को भारी नुकसान पहुंचाया। इसके अलावा, ईरान में मौजूद विदेशी नागरिक भी निशाने पर आए। पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के शांतिपुर के तीन युवक—अफिरुल शेख, अशरफुल शेख, और सबर अली—जो सोने के गहनों का काम करने ईरान गए थे, तेहरान में एक रिहायशी इमारत पर इजरायली हमले में मारे गए। इस हमले में 29 बच्चों सहित 60 लोग मारे गए।
ईरान की जवाबी कार्रवाई: इजरायल में तबाही
ईरान ने इस युद्ध में अकेले दम पर इजरायल को करारा जवाब दिया। उसने सैकड़ों मिसाइलें और ड्रोन दागे, जिनमें फतेह-1, सजिल, और हाइपरसोनिक मिसाइलें शामिल थीं। इन हमलों ने इजरायल को रेगिस्तान में तब्दील कर दिया।
बुनियादी ढांचा: तेल अवीव में सोरोका मेडिकल सेंटर, यरुशलम और बीरशेबा में रिहायशी और व्यावसायिक इमारतें खंडहर में बदल गईं। इजरायल की सड़कें वीरान हो गईं, और उसकी अर्थव्यवस्था को भारी झटका लगा।
हानि: इजरायल में 28 लोग मारे गए, जिनमें 18 नागरिक और 10 सैनिक शामिल थे। करीब 3,000 लोग घायल हुए।
ईरान के मिसाइल हमलों ने इजरायल के कुछ सैन्य ठिकानों को नुकसान पहुंचाया, लेकिन आयरन डोम ने अधिकांश हमलों को नाकाम कर दिया।
हालांकि, ईरान इजरायल के शीर्ष नेतृत्व, जैसे बेंजामिन नेतन्याहू, या बड़े सैन्य अधिकारियों को निशाना बनाने में नाकाम रहा। यह ईरान की एकमात्र असफलता थी। बाकी, उसने इजरायल को तबाह कर दिखाया कि वह अकेले भी सामना कर सकता है।
ईरान का साहस: अमेरिका को भी चुनौती
ईरान ने न केवल इजरायल, बल्कि अमेरिका को भी चुनौती दी। उसने कतर में अमेरिकी अल-उदीद एयरबेस पर मिसाइल हमले किए, जिसे कासिम सुलेमानी की हत्या का बदला माना गया। इस हमले ने अमेरिका को हिलाकर रख दिया, लेकिन अमेरिका ने जवाबी हमला करने की हिम्मत नहीं दिखाई। ट्रंप ने सोशल मीडिया पर कहा, “ईरान ने अपना बदला ले लिया, मैं खामोश हूं।” अमेरिका ने इसके बजाय सीजफायर के लिए कतर के जरिए ईरान से बात की।
सोशल मीडिया पर चल रही खबरों के मुताबिक, ईरान ने अपनी शर्तों पर सीजफायर स्वीकार किया। उसने फिलिस्तीनी मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाने और अपनी संप्रभुता को बनाए रखने की शर्त रखी। ईरान ने किसी से भीख नहीं मांगी, न ही किसी को युद्ध में शामिल किया। उसने अकेले दम पर इजरायल और अमेरिका का सामना किया।
सीजफायर: ईरान की शर्तें, इजरायल की मजबूरी
इजरायल ने अमेरिका से समर्थन लेकर युद्ध शुरू किया, लेकिन ईरान के जवाबी हमलों ने उसे घुटनों पर ला दिया। इजरायल की अर्थव्यवस्था चरमरा गई, और उसने अमेरिका से सीजफायर की गुहार लगाई। अमेरिका, जिसके सैन्य अड्डे पर हमला हुआ, ने भी जवाबी कार्रवाई करने की बजाय शांति की बात की। यह दर्शाता है कि ईरान ने अपनी ताकत का लोहा मनवाया।
हालांकि, ईरान ने इजरायल के शीर्ष नेतृत्व को निशाना बनाने का लक्ष्य पूरा नहीं किया। कासिम सुलेमानी और 2025 में मारे गए नेताओं की हत्या का बदला लेने के लिए ईरान ने इजरायल को तबाह किया, लेकिन वह नेतन्याहू जैसे नेताओं को नहीं मार सका। यह उसकी एकमात्र कमी रही।
ईरान का साहस, इजरायल की अमेरिकी मदद
यह युद्ध ईरान के साहस और दृढ़ता की मिसाल है। उसने अकेले दम पर इजरायल को रेगिस्तान में तब्दील कर दिया, उसकी सड़कों को वीरान किया, और अमेरिका को भी जवाबी हमले की हिम्मत नहीं करने दी। इजरायल ने अमेरिका की मदद से ईरान के नेतृत्व और परमाणु कार्यक्रम को नुकसान पहुंचाया, जिसमें कासिम सुलेमानी और अन्य नेताओं की हत्या शामिल है। भारतीय नागरिकों की मौत ने इस युद्ध के वैश्विक प्रभाव को दिखाया।
ईरान ने अपनी शर्तों पर सीजफायर स्वीकार किया, लेकिन वह इजरायल के शीर्ष नेतृत्व को निशाना बनाने में नाकाम रहा। फिर भी, उसने दुनिया को दिखा दिया कि वह अकेले भी इजरायल और अमेरिका का सामना कर सकता है। यह युद्ध एक अस्थायी शांति की ओर ले गया, लेकिन ईरान का साहस और उसकी लड़ाई की भावना इसे ऐतिहासिक बनाती है।
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