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आखिर कर्नल सोफिया पर विवादित बयान देने वाले बीजेपी नेता पर कार्रवाई में देरी क्यों ?

लोग भले ही अपनी व्यस्तता या पुरानी बातों को भूल जाएं, लेकिन मैं कई बातों को याद रखता हूं और समय-समय पर उन्हें खबरों के माध्यम से आपके सामने लाता हूं। आज की खबर ऐसी है, जिसे शायद आप भूल चुके हैं, लेकिन मुझे याद है। इसलिए आज मैं इस खबर को लिख रहा हूं ताकि आप समझ सकें कि न्यायपालिका और पुलिस की कार्यप्रणाली कहीं तो ऐसी है, जहां त्वरित कार्रवाई होती है, और कहीं इसे पूरी तरह लंबित कर दिया जाता है।
इस दौर में सत्य लिखने वाले बहुत कम लोग बचे हैं, और जो हैं, उनके ऊपर भी प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। किसी का यूट्यूब चैनल बंद किया जा रहा है, किसी को ब्लॉक किया जा रहा है। न जाने कितने लोगों के चैनल प्रतिबंधित हो चुके हैं। इसी कड़ी में हमारे पोर्टल को भी नोटिस मिला है कि जनरल खबरें परोसना बंद करें। इतना ही नहीं, हमारे व्हाट्सएप अकाउंट भी ब्लॉक हो चुके हैं। इसका एकमात्र कारण है कि हम सच लिखते हैं, और वह भी उन ताकतवर लोगों के खिलाफ, जो व्हाट्सएप, फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म्स के आविष्कारक या नियंत्रक हैं। उनके खिलाफ लिखने का मतलब है प्रतिबंध और ब्लॉक होना।
फिर भी, हमारे पास अभी दो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म बचे हैं—फेसबुक और ट्विटर। फेसबुक से भी नोटिस आ चुका है, लेकिन अभी हमारा अकाउंट ब्लॉक नहीं हुआ है। मैं ये बातें इसलिए बता रहा हूं क्योंकि अब हमारे पास व्हाट्सएप जैसे साधन नहीं हैं, जिनके जरिए हम अपनी खबरों को आगे बढ़ा सकें। इसलिए मेरा आपसे अनुरोध है कि मेरी खबरों को जरूर पढ़ें। अगर आपको लगे कि खबर सच्ची और अच्छी है, तो इसे ज्यादा से ज्यादा साझा करें। इससे हमारे दर्शक बढ़ेंगे और हमें मानसिक सुकून मिलेगा कि हम सही रास्ते पर हैं। जब मेहनत का अच्छा परिणाम मिलता है, तो इंसान को और मेहनत करने में खुशी मिलती है।
धन्यवाद।

ज़की भारतीय

न्यायपालिका और पुलिस की कार्रवाई कहीं त्वरित ,कहीं लंबित क्यों ?

लखनऊ, 23 जून। भारतीय सेना की वीरांगना कर्नल सोफिया कुरैशी पर आपत्तिजनक और विवादित टिप्पणी करने वाले मध्य प्रदेश के बीजेपी नेता और कैबिनेट मंत्री कुंवर विजय शाह के खिलाफ अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। यह मामला तब और गंभीर हो जाता है, जब दूसरी ओर, ऑपरेशन सिंदूर और कर्नल सोफिया को लेकर सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने वाले अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को हरियाणा पुलिस ने तुरंत गिरफ्तार कर लिया था। सवाल उठता है कि आखिर बीजेपी नेता विजय शाह के खिलाफ कार्रवाई में देरी क्यों हो रही है? क्या कारण है कि वह अभी तक कानूनी कार्रवाई से बचे हुए हैं?

22 अप्रैल 2025 को कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत 6-7 मई को पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में आतंकी ठिकानों पर हमला किया था। इस ऑपरेशन की जानकारी देने के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने प्रेस ब्रीफिंग की थी। इस दौरान कर्नल सोफिया की बहादुरी और नेतृत्व की देशभर में सराहना हुई। हालांकि, मध्य प्रदेश के बीजेपी नेता और कैबिनेट मंत्री कुंवर विजय शाह ने 12 मई 2025 को एक सार्वजनिक मंच पर कर्नल सोफिया को कथित तौर पर ‘आतंकवादियों की बहन’ कहकर उनकी धार्मिक पहचान पर सवाल उठाया, जिससे देशभर में आक्रोश फैल गया।
विजय शाह के इस बयान की विपक्षी दलों, सामाजिक संगठनों और जनता ने कड़ी निंदा की। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसे ‘अत्यंत दुखद और शर्मनाक’ करार देते हुए केंद्र और बीजेपी नेतृत्व से सख्त कार्रवाई की मांग की। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी बीजेपी और आरएसएस पर निशाना साधते हुए इसे सैन्य गरिमा और राष्ट्रीय एकता पर हमला बताया।

विजय शाह के खिलाफ अब तक क्या हुआ?

विजय शाह के बयान के बाद मध्य प्रदेश पुलिस ने उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152, 196(1)(b), और 197(1)(c) के तहत FIR दर्ज की थी। सुप्रीम कोर्ट ने 19 मई 2025 को विजय शाह की माफी को ठुकरा दिया और जांच के लिए तीन IPS अधिकारियों की विशेष जांच टीम (SIT) गठन करने का आदेश दिया। इसके बावजूद, विजय शाह के खिलाफ कोई गिरफ्तारी नहीं हुई और वह अभी भी आजाद हैं। बीजेपी की मध्य प्रदेश इकाई ने उन्हें भोपाल स्थित पार्टी मुख्यालय में तलब किया था, लेकिन कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई की खबर नहीं आई।
विजय शाह ने अपने बयान पर खेद जताते हुए कहा था कि वह कर्नल सोफिया को ‘सगी बहन से भी ज्यादा सम्मानित’ मानते हैं और उनकी टिप्पणी का गलत अर्थ निकाला गया। हालांकि, विपक्ष और सामाजिक संगठनों का कहना है कि उनकी माफी केवल दिखावा है और यह बयान जानबूझकर सांप्रदायिक विद्वेष फैलाने के लिए दिया गया था।

प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद का मामला

दूसरी ओर, अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को 8 मई 2025 को ऑपरेशन सिंदूर और कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर सोशल मीडिया पर की गई टिप्पणी के लिए हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया था। प्रोफेसर अली खान ने अपनी पोस्ट में लिखा था कि दक्षिणपंथी टिप्पणीकार कर्नल सोफिया की तारीफ कर रहे हैं, जो एक मुस्लिम महिला हैं, लेकिन उन्हें भीड़ हिंसा और संपत्ति विध्वंस के पीड़ितों के लिए भी आवाज उठानी चाहिए। इस पोस्ट को हरियाणा राज्य महिला आयोग ने ‘महिलाओं के अपमान’ और ‘सांप्रदायिक विद्वेष’ को बढ़ावा देने वाला माना और उनके खिलाफ BNS की धारा 196, 197, 152, और 299 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया।
18 मई 2025 को दिल्ली से गिरफ्तार होने के बाद, अली खान को 20 मई को हरियाणा की एक स्थानीय अदालत ने 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 25 मई 2025 को उन्हें अंतरिम जमानत दे दी और उनकी गिरफ्तारी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन बताया। कोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि अली खान का पासपोर्ट जब्त किया जाए और वह भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर कोई टिप्पणी न करें।

क्यों बचा हुआ है विजय शाह?

विजय शाह के खिलाफ कार्रवाई में देरी को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। विपक्षी नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का आरोप है कि बीजेपी सरकार अपने नेताओं को संरक्षण दे रही है। X पर कई यूजर्स ने इसे बीजेपी की ‘दोहरी नीति’ करार दिया है, जहां एक प्रोफेसर को मामूली टिप्पणी के लिए तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन एक कैबिनेट मंत्री को आपत्तिजनक और सांप्रदायिक बयान देने के बावजूद कोई सजा नहीं मिली।
हरियाणा और मध्य प्रदेश पुलिस का रवैया भी इस मामले में अलग-अलग रहा है। जहां हरियाणा पुलिस ने प्रोफेसर अली खान के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की, वहीं मध्य प्रदेश पुलिस ने विजय शाह के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि विजय शाह की कैबिनेट मंत्री के रूप में स्थिति और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का समर्थन उन्हें कानूनी कार्रवाई से बचा रहा है। इसके अलावा, बीजेपी की मध्य प्रदेश इकाई ने इस मामले को दबाने की कोशिश की है, जिसे विपक्ष ‘सत्ता का दुरुपयोग’ बता रहा है।

कानूनी और सामाजिक सवाल

यह मामला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सांप्रदायिक सौहार्द, और कानून के समक्ष समानता जैसे मुद्दों पर गंभीर सवाल उठाता है। प्रोफेसर अली खान की टिप्पणी को ‘युद्ध विरोधी’ और ‘विचारोत्तेजक’ माना गया, फिर भी उनकी गिरफ्तारी तुरंत हो गई। दूसरी ओर, विजय शाह का बयान स्पष्ट रूप से एक सैन्य अधिकारी की धार्मिक पहचान को निशाना बनाता था, जो सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा सकता था। फिर भी, उनके खिलाफ कार्रवाई में देरी ने सरकार और कानून लागू करने वाली एजेंसियों की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किए हैं।

कर्नल सोफिया कुरैशी पर विजय शाह का विवादित बयान न केवल सैन्य सम्मान और राष्ट्रीय एकता पर हमला है, बल्कि यह देश में कानून के दोहरे मापदंड को भी उजागर करता है। जब एक प्रोफेसर को उनकी टिप्पणी के लिए तुरंत जेल भेज दिया गया और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी, तो एक कैबिनेट मंत्री के खिलाफ कार्रवाई में देरी क्यों? यह सवाल न केवल लखनऊ बल्कि पूरे देश में गूंज रहा है। क्या यह सत्ता की ताकत है या कानून की कमजोरी? इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की SIT जांच के नतीजे और बीजेपी का अगला कदम इस विवाद को नई दिशा दे सकते हैं।

इस मामले में आगे की अपडेट्स के लिए हमारे साथ बने रहें। क्या आप मानते हैं कि विजय शाह के खिलाफ तुरंत कार्रवाई होनी चाहिए? अपनी राय कमेंट में साझा करें।

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