ज़की भारतीय
लखनऊ 22 अप्रैल। उत्तर प्रदेश के प्रमुख शहरों में रिश्वत के दमपर अवैध निर्माण का खेल बदस्तूर जारी है। विकास प्राधिकरणों के सख्त नियमों के बावजूद बिल्डर बिना अनुमति के कमर्शियल और आवासीय भवनों का निर्माण कर रहे हैं। इससे न केवल सरकारी नियमों का उल्लंघन हो रहा है, बल्कि उन आम नागरिकों का भविष्य भी खतरे में पड़ रहा है, जो इन फ्लैटों को अपनी मेहनत की कमाई से खरीदते हैं। जब इन अवैध इमारतों पर विकास प्राधिकरण का बुलडोजर चलता है, तो बिल्डर तो मुनाफा कमाकर निकल जाता है, लेकिन कारवाई का शिकार वही लोग होते हैं, जिन्होंने अपने सपनों का आशियाना खरीदा था।
हालांकि उत्तर प्रदेश में 1.77 लाख से अधिक अवैध निर्माण चिह्नित किए गए थे, लेकिन अबतक केवल 11,677 ही ध्वस्त किए गए हैं । इसमें बुलडोजर कार्रवाई के बजाय कंपाउंडिंग और निगरानी पर ध्यान देना होगा। पारदर्शी प्रक्रियाएं, सख्त रजिस्ट्री नियम और जवाबदेही से अवैध निर्माण पर अंकुश लगेगा, प्राधिकरण की आय बढ़ेगी, और खरीदारों का भरोसा बनेगा।
नियम सख्त, फिर भी अवैध निर्माण क्यों?
उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में विकास प्राधिकरणों के नियम लगभग एक समान हैं, लेकिन स्थानीय स्तर पर कुछ बदलाव देखने को मिलते हैं। इन नियमों की जटिलता और अनुमति प्रक्रिया में देरी का फायदा उठाकर बिल्डर बिना परमिशन के निर्माण कार्य शुरू कर देते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अनुमति प्रक्रिया को सरल करने और रिश्वतखोरी पर लगाम लगाने की जरूरत है। विकास प्राधिकरण के कई अधिकारी और कर्मचारी बिल्डरों से सांठगांठ कर अवैध निर्माण को बढ़ावा देते हैं। इसका खामियाजा उन मासूम खरीदारों को भुगतना पड़ता है, जो अनजाने में इन फ्लैटों में निवेश कर देते हैं।
बुलडोजर की कार्रवाई, न्याय या अन्याय?
पिछले कुछ वर्षों में लखनऊ, कानपुर और अन्य शहरों में अवैध निर्माण पर बुलडोजर की कार्रवाई तेज हुई है। हालांकि यह कार्रवाई नियमों का पालन सुनिश्चित करने के लिए जरूरी है, लेकिन इसका असर सबसे ज्यादा उन गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों पर पड़ता है, जो कम कीमत में फ्लैट खरीदते हैं। उदाहरण के लिए, हाल ही में लखनऊ के ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के अलमास मैरिज हॉल के निकट बिल्डर सज्जाद रिज़वी द्वारा बिना नक्शा स्वीकृत किए 2000 वर्ग फीट में पांच मंजिला अपार्टमेंट को ध्वस्त करने की कार्रवाई के दौरान आसपास के घरों में दरारें पड़ गईं और लोग दहशत में आ गए। ऐसी कार्रवाइयों में कई बार आसपास की इमारतें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, और कुछ मामलों में लोगों की जान भी चली गई है। समाचार पत्रों में ऐसी घटनाओं की खबरें समय-समय पर छपती रहती हैं।
विकास प्राधिकरणों को अपनी प्रक्रियाओं में सुधार लाने की जरूरत है। विशेषज्ञों का सुझाव है कि अनुमति प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाया जाए। इसके साथ ही, कंपाउंडिंग चार्ज और मानचित्र स्वीकृति जैसे नियमों को लचीला करना होगा। अगर कोई इमारत अवैध रूप से बन गई है, तो उसे तुरंत ध्वस्त करने के बजाय बिल्डर को 6 महीने से एक साल का नोटिस देकर नियमों का पालन करने का मौका देना चाहिए। उदाहरण के लिए, फायर ब्रिगेड एनओसी या मानचित्र स्वीकृति जैसे नियम बाद में भी लागू किए जा सकते हैं, बशर्ते प्रक्रिया में रिश्वतखोरी न हो।इसके अलावा, सरकार को फ्लैटों की रजिस्ट्री के लिए सख्त नियम लागू करने चाहिए। बिना स्वीकृत मानचित्र के बने फ्लैटों की रजिस्ट्री पर रोक लगानी चाहिए, और इसका दायित्व बिल्डर पर डालना चाहिए। वर्तमान में रजिस्ट्री प्रक्रिया में केवल राजस्व शुल्क पर ध्यान दिया जाता है, जिसके कारण अवैध निर्माण को बढ़ावा मिलता है।
अवैध निर्माण का सबसे ज्यादा नुकसान उन गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों को होता है, जो कम लागत में फ्लैट खरीदकर अपने परिवार के लिए छत का इंतजाम करना चाहते हैं। ज्यादातर खरीदारों को यह जानकारी नहीं होती कि बिल्डिंग का नक्शा स्वीकृत है या नहीं। जब ऐसी इमारतों पर बुलडोजर चलता है, तो बिल्डर तो बच निकलता है, लेकिन खरीदार अपनी जमा-पूंजी और सपनों के आशियाने दोनों खो देते हैं।
केवल बुलडोजर चलाना ही समाधान नहीं
पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ सहित कई शहरों में अवैध निर्माण को लेकर कार्रवाइयां हुई हैं। लखनऊ के गोमती नगर, कानपुर के किदवई नगर और वाराणसी के कई इलाकों में बुलडोजर की कार्रवाई ने सुर्खियां बटोरीं। इन कार्रवाइयों में कई बार आसपास की इमारतें क्षतिग्रस्त हुईं और कुछ मामलों में लोगों की जान भी गई। इन घटनाओं से यह स्पष्ट है कि केवल बुलडोजर चलाना ही समाधान नहीं है। सरकार और विकास प्राधिकरणों को ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जो अवैध निर्माण को रोकें और आम नागरिकों के हितों की रक्षा करें।
उत्तर प्रदेश में अवैध निर्माण की समस्या को जड़ से खत्म करने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। अनुमति प्रक्रिया को सरल करना, रिश्वतखोरी पर लगाम लगाना, और बिल्डरों पर सख्त कार्रवाई करना इस दिशा में पहला कदम हो सकता है। साथ ही, फ्लैट खरीदारों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाने और रजिस्ट्री प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने की जरूरत है। तभी आम नागरिकों के सपनों का आशियाना सुरक्षित रह सकेगा, और बिल्डरों की मनमानी पर लगाम लगाई जा सकेगी।
प्राधिकरणों की जटिल प्रक्रियाएं, कठोर शर्तें और कथित रिश्वतखोरी प्रमुख कारण
उत्तर प्रदेश में अवैध निर्माण, विकास प्राधिकरणों के नियम-कानून और सुधार के उपाय
उत्तर प्रदेश के ये प्राधिकरण शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 के तहत कार्य करते हैं और आवासीय, व्यावसायिक (कमर्शियल) और मिश्रित उपयोग के लिए भवन निर्माण को विनियमित करने के लिए अपने नियम और उप-नियम लागू करते हैं। हालांकि, अवैध निर्माण एक गंभीर समस्या बनी हुई है, जिसके पीछे प्राधिकरणों की जटिल प्रक्रियाएं, कठोर शर्तें और कथित रिश्वतखोरी प्रमुख कारण हैं।
निर्माण के लिए परमिशन
उत्तर प्रदेश में विकास प्राधिकरणों के नियमों के अनुसार, किसी भी भवन निर्माण (आवासीय या व्यावसायिक) के लिए नक्शा (मानचित्र) स्वीकृति अनिवार्य है, विशेष रूप से आवासीय निर्माण: यदि भूखंड का क्षेत्रफल 300 वर्ग मीटर (लगभग 3229 वर्ग फीट) से अधिक है, तो नक्शा स्वीकृति अनिवार्य है। 300 वर्ग मीटर से कम के भूखंडों पर कुछ छूट हो सकती है, लेकिन स्थानीय नियमों के आधार पर प्राधिकरण की अनुमति आवश्यक हो सकती है
व्यावसायिक दुकानों, फ्लैटों या अपार्टमेंट्स के लिए, भूखंड के आकार की परवाह किए बिना, नक्शा स्वीकृति और व्यावसायिक उपयोग की अनुमति अनिवार्य है। इसके लिए जोनिंग नियमों (उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन और विकास अधिनियम, 1973 के तहत) का पालन करना होता है, जो यह निर्धारित करते हैं कि कोई क्षेत्र आवासीय, व्यावसायिक या मिश्रित उपयोग के लिए है।
मल्टी-स्टोरी बिल्डिंग
तीन मंजिल से अधिक की इमारतों के लिए अतिरिक्त अनुमतियां जैसे अग्निशमन विभाग से एनओसी, पर्यावरण मंजूरी (बड़े प्रोजेक्ट्स के लिए), और भूकंपरोधी डिजाइन की स्वीकृति आवश्यक होती है। उत्तर प्रदेश भवन निर्माण और विकास उप-नियम, 2008 (संशोधित 2016 और 2017) पर आधारित हैं।
जिनमे प्रमुख शर्तें शामिल हैं।
सभी निर्माणों के लिए ऑनलाइन नक्शा स्वीकृति प्रणाली लागू है। आवेदक को भूखंड का स्वामित्व प्रमाण, नक्शा, और अन्य दस्तावेज जमा करने होते हैं।यदि कोई निर्माण बिना स्वीकृति के किया गया है, तो उसे नियमित करने के लिए कंपाउंडिंग चार्ज देना होता है। यह चार्ज भवन के क्षेत्रफल, उपयोग (आवासीय/व्यावसायिक), और उल्लंघन की गंभीरता पर निर्भर करता है।
सोलर सिस्टम
1000 वर्ग फीट से बड़े घरों में सोलर सिस्टम लगाना अनिवार्य है।
अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी): हाल ही में LDA ने घोषणा की है कि नक्शा स्वीकृति के लिए नगर निगम से एनओसी की आवश्यकता नहीं होगी; इसके बजाय तहसील से सीलिंग और नजूल की जानकारी ली जाएगी।
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार
कई मामलों में, प्राधिकरण के निचले स्तर के कर्मचारी और अधिकारी कथित तौर पर रिश्वत लेकर अवैध निर्माण को अनदेखा करते हैं।
कुछ बिल्डरों को मौखिक अनुमति दी जाती है, लेकिन बाद में ये निर्माण अवैध घोषित हो जाते हैं।अवैध प्लॉटिंग और निर्माण की शिकायतें अक्सर नजर अंदाज की जाती हैं।
बिल्डर अग्रिम भुगतान लेने के लिए जल्दबाजी में निर्माण शुरू कर देते हैं, जिससे नियमों की अनदेखी होती है। खरीदारों को अक्सर यह नहीं पता होता, निर्माण अवैध है।
प्राधिकरण को कानून में लाना चाहिए बदलाव
अवैध निर्माण को तुरंत ध्वस्त करने के बजाय, इमारतों को सील करके 6-12 महीने की समय सीमा दी जानी चाहिए। इस दौरान बिल्डर को कंपाउंडिंग चार्ज, नक्शा स्वीकृति, और अन्य दस्तावेज पूरे करने का मौका मिलेगा। इससे प्राधिकरण की आय बढ़ेगी और खरीदारों का नुकसान कम होगा।
बिना स्वीकृत नक्शे और प्राधिकरण की अनुमति के फ्लैट या व्यावसायिक संपत्ति की रजिस्ट्री पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए। इससे अवैध निर्माण पर अंकुश लगेगा। प्राधिकरण के कर्मचारियों की नियमित निगरानी और जवाबदेही तय की जानी चाहिए। अवैध निर्माण की अनदेखी करने वाले अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई हो। ड्रोन और जीआईएस-आधारित निगरानी प्रणाली लागू की जा सकती है। बिल्डरों को अग्रिम भुगतान लेने से पहले रेरा (RERA) पंजीकरण और प्राधिकरण की अनुमति अनिवार्य करनी चाहिए। खरीदारों के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं ताकि वे अवैध निर्माण में निवेश न करें
प्राधिकरण को कानून में लाना चाहिए बदलाव
अवैध निर्माण को तुरंत ध्वस्त करने के बजाय, इमारतों को सील करके 6-12 महीने की समय सीमा दी जानी चाहिए। इस दौरान बिल्डर को कंपाउंडिंग चार्ज, नक्शा स्वीकृति, और अन्य दस्तावेज पूरे करने का मौका मिलेगा।
खरीदारों की सुरक्षा
बिल्डरों को अग्रिम भुगतान लेने से पहले रेरा (RERA) पंजीकरण और प्राधिकरण की अनुमति अनिवार्य करनी चाहिए। खरीदारों के लिए जागरूकता अभियान चलाए जाएं ताकि वे अवैध निर्माण में निवेश न करें।उत्तर प्रदेश भवन निर्माण और विकास उप-नियमों में संशोधन करके कंपाउंडिंग प्रक्रिया को और पारदर्शी बनाना चाहिए। अवैध निर्माण को नियमित करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश जारी किए जाएं।
उत्तर प्रदेश में अवैध निर्माण एक जटिल समस्या है, जिसके मूल में जटिल नियम, भ्रष्टाचार, और निगरानी की कमी है।बुलडोजर कार्रवाई के बजाय कंपाउंडिंग और नियमितीकरण पर ध्यान देना चाहिए, ताकि प्राधिकरण की आय बढ़े और खरीदारों का नुकसान कम हो। साथ ही, रजिस्ट्री और निगरानी में सख्ती से अवैध निर्माण पर अंकुश लगाया जा सकता है। यदि ये सुधार लागू किए जाएं, तो शहरी नियोजन में सुधार होगा और नागरिकों का भरोसा प्राधिकरणों पर बढ़ेगा।