लखनऊ, 4 जुलाई ।समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता आलम बदी के साथ कथित तौर पर बदतमीजी की घटना ने उत्तर प्रदेश की सियासत में तूफान खड़ा कर दिया है। इस घटना में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के स्थानीय प्रवक्ता वकार अहमद ने शाह आलम के सम्बन्ध में सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मांग की है कि वह इस मामले में दोषी व्यक्तियों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई करें और उन्हें पार्टी से निष्कासित करें। साथ ही, उन्होंने शाह आलम से यह भी कहा कि यदि सपा कार्रवाई नहीं करती, तो उन्हें स्वयं पार्टी से इस्तीफा दे देना चाहिए।हालांकि आलम बदी ने इस घटना के कई घंटे बाद अपने साथ हुई अभद्रता को सिरे से नकारते हुए कहा की भीड़ ज्यादा होने और फोटो खिंचवाने की वजह से लोग आगे आ रहे थे और मुझे ऐसा लग रहा था कि दम घुट जाएगा इसलिए मैं खुद ही किनारे चला गया मुझे कौन धक्का देगा?
यह बयान उन्होंने उस वक्त दिया जब सोशल मीडिया पर यह खबर वायरल होने लगी,समाजवादी पार्टी के विधायक के साथ अभद्रता हुई है। लेकिन इससे पहले मीडिया और सोशल मीडिया पर जो वीडियो दिखाया गया उसमें एक आदमी उनको कोहनी से पीछे करता हुआ स्पष्ट रूप से नजर आ रहा है।
यह घटना आजमगढ़ के मुबारकपुर इलाके में एक सभा के दौरान हुई। इस घटना ने सपा की मुस्लिम समर्थन आधार पर गहरे सवाल उठाए हैं। एक स्थानीय मुस्लिम संगठन ने सपा पर आरोप लगाया है कि वह मुस्लिम वोटों का इस्तेमाल तो करती है, लेकिन अपने मुस्लिम नेताओं के साथ खड़ी नहीं होती। इस संदर्भ में सपा के वरिष्ठ नेता और महमूदाबाद के राजा मोहम्मद आमिर मोहम्मद खान का उदाहरण दिया जा रहा है, जिन्हें एक विवादित बयान के मामले में सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा, लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी कोई मदद नहीं की। मोहम्मद आमिर को अपनी कानूनी लड़ाई स्वयं लड़नी पड़ी, और सपा की ओर से उनके प्रति कोई सहानुभूति नहीं दिखाई गई।इसी तरह, सपा के कद्दावर नेता आजम खान और उनके परिवार के साथ योगी आदित्यनाथ सरकार की कथित उत्पीड़न नीति का मामला भी चर्चा में है। आजम खान, जो मुलायम सिंह यादव के करीबी सहयोगी थे, उनकी पत्नी तंजीन फातिमा और बेटे अब्दुल्ला आजम को छोटे-मोटे मामलों, जैसे फर्जी मार्कशीट और जन्मतिथि में गड़बड़ी के आरोपों में जेल में डाल दिया गया। ये मामले इतने गंभीर नहीं थे कि लंबी सजा हो, फिर भी उनकी जमानत में देरी हुई, जबकि हत्या, डकैती और लूट जैसे गंभीर मामलों में कई लोग आसानी से जमानत पर बाहर हैं। उदाहरण के तौर पर, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कई नेताओं पर गंभीर आपराधिक आरोप होने के बावजूद कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।
विपक्षी दलों ने यह भी याद दिलाया कि सपा के पूर्व समर्थक और बाहुबली नेता मुख्तार अंसारी की जेल में संदिग्ध मृत्यु का मामला भी अनसुलझा है। मुख्तार ने मृत्यु से पहले अपने बेटे से टेलीफोन पर बातचीत में दावा किया था कि उन्हें जहर दिया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हत्या की पुष्टि नहीं की, लेकिन उनका अंतिम बयान, जो कानूनी रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, सपा की चुप्पी के कारण विवाद का विषय बना।
AIMIM और कांग्रेस का कहना है कि सपा का मुस्लिम हितैषी रवैया केवल दिखावा है, और वह अपने मुस्लिम नेताओं को संकट में अकेला छोड़ देती है।इस घटना ने सपा की आंतरिक एकता और विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए हैं। विश्लेषकों का मानना है कि यदि अखिलेश यादव इस मामले में त्वरित और सख्त कार्रवाई नहीं करते, तो सपा का मुस्लिम वोट बैंक खिसक सकता है। हाल के स्थानीय निकाय चुनावों में मेरठ और अलीगढ़ में बसपा की जीत ने दलित-मुस्लिम समीकरण को मजबूत किया है, और कांग्रेस इस अवसर का फायदा उठाकर 2027 के विधानसभा चुनावों में अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है। सपा के लिए यह समय संकटमोचक साबित हो सकता है, क्योंकि उनकी चुप्पी या निष्क्रियता मुस्लिम समुदाय में गलत संदेश दे सकती है।शाह आलम ने इस घटना पर दुख जताते हुए कहा कि वह सपा के प्रति वफादार हैं, लेकिन पार्टी को इस मामले में स्पष्ट रुख अपनाना होगा। उन्होंने अखिलेश यादव से अपील की है कि वह दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करें ताकि कार्यकर्ताओं में विश्वास बना रहे। दूसरी ओर, वकार अहमद ने दावा किया कि सपा के कुछ नेता स्थानीय स्तर पर AIMIM की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान हैं, और यह घटना उसी का नतीजा है।