लखनऊ, 20 जून । शाहरान और इस्फहान में तेल डिपो और परमाणु सुविधाओं पर हमले हुए। अराक में भारी जल रिएक्टर को निशाना बनाया गया, जिसके छत में बड़ा छेद हुआ, हालांकि रेडियोधर्मी रिसाव की कोई पुष्टि नहीं हुई। करमानशाह और तबरीज में मिसाइल गोदाम और हवाई अड्डे तबाह हुए, जबकि मशहद में 15 जून को एक ईंधन विमान नष्ट हुआ, जो इजरायल का 2,300 किलोमीटर की दूरी तक सबसे लंबा हमला था। ईरान में अब तक 639 लोग मारे गए, जिनमें इस्लामिक रिवॉल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) के शीर्ष कमांडर हुसैन सलामी, एयरोस्पेस कमांडर मेजर जनरल अमीराली हाजीजादेह, और नौ परमाणु वैज्ञानिक शामिल हैं। 1,326 लोग घायल हुए हैं, और तेहरान में 36 घंटे से अधिक समय तक इंटरनेट ब्लैकआउट रहा, जिसने सूचना के प्रवाह को रोक दिया। इजरायल की मोसाद ने गुप्त अभियानों के जरिए ईरान के सैन्य नेतृत्व को निशाना बनाया, जिससे ईरान का मिसाइल और परमाणु कार्यक्रम गंभीर रूप से प्रभावित हुआ।
ईरान ने अपनी कार्रवाइयों को बताया आत्मरक्षा का हिस्सा
यह युद्ध इजरायल की आक्रामक नीतियों का परिणाम माना जा रहा है, जिसने बिना ठोस सबूतों के ईरान पर हमला किया। इजरायल ने न केवल ईरान के सैन्य ठिकानों, बल्कि रिहायशी क्षेत्रों को भी निशाना बनाया, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने मानवता के खिलाफ अपराध करार दिया है। इसके विपरीत, ईरान ने अपनी कार्रवाइयों को आत्मरक्षा का हिस्सा बताया और युद्ध के नियमों का पालन करने की कोशिश की। बेर्शेबा में सोरोका अस्पताल पर हमला अनजाने में हुआ, जिसके लिए ईरान ने तुरंत माफी मांगी, लेकिन इजरायल ने तेहरान और इस्फहान में रिहायशी इलाकों पर जानबूझकर हमले किए। इजरायल की यह रणनीति क्षेत्र में उसकी आतंकवादी मानसिकता को उजागर करती है, जिसने न केवल ईरान, बल्कि फिलिस्तीन और लेबनान में भी अत्याचार किए हैं। उदाहरण के लिए, इजरायल ने हाल ही में गाजा में एक सहायता स्थल के पास 12 फलस्तीनियों को मार डाला, जिसकी व्यापक निंदा हुई।
अमेरिका की इस युद्ध में रही पक्षपातपूर्ण भूमिका
उसने इजरायल के आयरन डोम और एरो-3 रक्षा प्रणालियों को मजबूत करने के लिए तकनीकी और सैन्य सहायता प्रदान की, लेकिन ईरान के खिलाफ कोई निष्पक्ष जांच नहीं की। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा कि वह दो सप्ताह में फैसला लेंगे कि क्या अमेरिका ईरान पर प्रत्यक्ष हमला करेगा। ट्रम्प ने ईरान की फोर्डो परमाणु सुविधा को नष्ट करने की योजना पर विचार किया, जो केवल अमेरिका के विशेष हथियारों से ही संभव है। यह दोहरा मापदंड साफ दिखता है, क्योंकि अमेरिका ने भारत-पाकिस्तान तनाव में तुरंत युद्धविराम की मांग की थी, जब पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने भारत में हमले किए थे। भारत ने ट्रम्प की सलाह पर युद्धविराम किया, लेकिन इजरायल के फिलिस्तीन और लेबनान में अत्याचारों पर अमेरिका ने एक शब्द भी नहीं बोला। यह पक्षपात मध्य पूर्व में शांति की संभावनाओं को कमजोर कर रहा है।
ईरान ने इस युद्ध में अपनी स्वतंत्रता और ताकत का परिचय दिया है। उसने रूस और अन्य सहयोगियों से सैन्य सहायता लेने से इनकार कर दिया, यह कहते हुए कि वह अकेले इजरायल का सामना कर सकता है। ईरान ने अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस को चेतावनी दी कि इजरायल का समर्थन करने पर उनके क्षेत्रीय ठिकाने निशाना बनेंगे। ईरान की मिसाइलें, विशेष रूप से फतह-1 और सेजिल, ने इजरायल के रक्षा तंत्र को चुनौती दी, जिससे इजरायल को भारी नुकसान हुआ। हालांकि, इजरायल ने ईरान के परमाणु और तेल ढांचे को नष्ट कर उसकी अर्थव्यवस्था और सैन्य क्षमता को कमजोर किया। दोनों देशों में आम नागरिक इस युद्ध की सबसे बड़ी कीमत चुका रहे हैं। तेल अवीव में लोग बंकरों में शरण ले रहे हैं, जबकि तेहरान में रिहायशी इमारतों के मलबे में लोग दबे हुए हैं।
इजरायल की आक्रामकता और अमेरिका की पक्षपातपूर्ण नीतियों ने इस संकट को और गहरा किया
अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस युद्ध को रोकने की कोशिश कर रहा है। 20 जून को जिनेवा में यूरोपीय विदेश मंत्रियों (ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी) ने ईरानी समकक्ष से मुलाकात की, जिसमें युद्धविराम और परमाणु कूटनीति पर चर्चा हुई। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने चार सूत्री प्रस्ताव पेश किया, जिसमें ईरान से यूरेनियम संवर्धन शून्य करने और IAEA के साथ पूर्ण सहयोग की मांग शामिल है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने ईरान, रूस, चीन, पाकिस्तान और अल्जीरिया के अनुरोध पर 20 जून को आपात बैठक बुलाई। रूस ने इजरायल की निंदा की, लेकिन सैन्य हस्तक्षेप से परहेज किया। भारत ने तटस्थ रुख अपनाते हुए ईरान में फंसे 110 छात्रों को निकाला।
यह युद्ध न केवल इजरायल और ईरान, बल्कि पूरे मध्य पूर्व की स्थिरता के लिए खतरा बन चुका है। इजरायल की आक्रामकता और अमेरिका की पक्षपातपूर्ण नीतियों ने इस संकट को और गहरा किया है। ईरान ने संयम और आत्मरक्षा का रास्ता चुना, लेकिन उसकी मिसाइलें और ड्रोन इजरायल को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। तेल अवीव, हाइफा और बेर्शेबा में रिहायशी और औद्योगिक ढांचे तबाह हुए, जबकि तेहरान, इस्फहान और अराक में आम नागरिकों की मौतें और बुनियादी ढांचे का नुकसान चिंता का विषय है। यह युद्ध क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा है, और तत्काल युद्धविराम के बिना स्थिति और बिगड़ सकती है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय को निष्पक्ष भूमिका निभानी होगी, ताकि इस तबाही को रोका जा सके। ईरान ने अपनी ताकत और स्वतंत्रता दिखाई है, लेकिन इजरायल की आतंकवादी मानसिकता और अमेरिका का समर्थन इस क्षेत्र को अस्थिरता की ओर धकेल रहा है।