ज़की भारतीय
लखनऊ ,27 अक्टूबर| देश की जनता का यक़ीन,पीड़ितों के सहारे का चराग़ और भारत की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई के इन्साफ के चाँद पर लगे रिश्वत खोरी के कलंक से सारा भारत सन्नाटे में है |ये वो जांच एजेंसी है जिसे किसी भी सरकार में हाई प्रोफाइल मामले में शायद ही निष्पक्ष जांच करने का अवसर प्राप्त हुआ हो | इधर सीबीआई में जो उठा पटख चल रही है उसका एक कारण ख़ास ये नज़र आ रहा है,कि किसी एक ईमानदार अधिकारी ने अपने पद और अपने देश के हित में सरकार कि क़तई फ़िक्र नहीं की और अपनी ज़बान खोल दी | अब वो ईमानदार कौन अधिकारी है ? कौन बेईमान और सरकार का ग़ुलाम ? इसका फैसला करने का मुझे अधिकार नहीं है | सीबीआइ निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना आपस में भिडे हुए हैं। तो ये बात तो तय है कि इनमे से कोई एक ग़लत है और कोई एक सही | इसे लेकर एक तरफ जहां सीबीआइ अपनी ही नज़रों में गिर गई है तो वहीं दूसरी तरफ पूरे देश के सामने सीबीआइ का चेहरा दाग़दार हो गया है | इस मामले की आंच सिर्फ सीबीआई पर ही नहीं आई है बल्कि केंद्र सरकार भी इसकी आग की लपटों की चपेट में है, तभी तो राजनीतिक दल भी इस मामले में भाजपा सरकार को चारों तरफ से घेर रहे हैं| इन दो सीबीआई अधिकारीयों के आरोप-प्रत्यारोप के कारण जहाँ दोनों को छुट्टी पर भेज दिया गया वहीँ कई अन्य अधिकारियों पर भी इस विवाद के बादल का पहाड़ फट गया है।
जहाँ तक सबको पता है कि इस जांच एजेंसी से जांच करवाने के लिए भारत का हर पीड़ित व्यक्ति धरने-प्रदर्शन तक करता था ,लेकिन जब से ये प्रकरण हुआ है तब से पूरे भारत में किसी ने भी इस एजेंसी से जांच कराए जाने कि मांग नहीं कि है |जिससे महसूस होता है कि जनता का इस जांच एजेंसी से विश्वास उठा है | सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि सीबीआई कि जांच यूपी पुलिस द्धारा करवाई जाना चाहिए ,तो कोई उसके जवाब में ये कहता हुआ नज़र आ रहा है कि इस जांच एजेंसी की जांच होमगार्ड के माध्यम से करवाई जानी चाहिए | कुल मिलाकर सीबीआई का मामला एक मज़ाक़ बनकर रह गया है | बताते चलें कि सीबीआइ भ्रष्टाचार, आर्थिक अपराध और आपराधिक मामलों की ही जांच करती है। सूत्रों के अनुसार पिछले कुछ वर्षों में सीबीआइ की लिस्ट में ऐसे मामलों की संख्या में इज़ाफ़ा हुआ है, जिसका खुलासा करने में एजेंसी नाकाम रही है। इसमें ज्यादातर मामले भ्रष्टाचार के हैं।
सीबीआई के हाथ में आये हुए 66.8 फीसद मामलों में ही सीबीआइ अपराध साबित कर सकी। वहीं वर्ष 2014 से नवंबर नवंबर 2017 के बीच सीबीआइ भ्रष्टाचार के सिर्फ 68 फीसद मामलों में ही साक्ष्य जुटाने में सफल रही है। मतलब 32 फीसद केस में सीबीआइ को नाकामी हाथ लगी। हालाँकि 68 प्रतिशत मामलों में सबूत इकठ्ठा करने से सीबीआई की नाकामी साबित नहीं होती |सतप्रतिशत सफलता किसी भी विभाग को आज तक नहीं मिले है,यही नहीं मौजूदा मोदी सरकार भी अपने किये सभी वादे पूरे करने में कामयाब नहीं हो सकी है|
ये अलग बात है कि सीबीआइ की अपराध साबित करने की दर वर्ष 2014 में 69.02 फीसद, वर्ष 2015 में 65.1 फीसद और साल 2016 में 66.8 प्रतिशत रही थी। वहीं बड़े आपराधिक मामलों में ये दर मात्र 3.96 फीसद ही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भ्रष्ट्राचार के तीन में से एक मामलों में में सीबीआइ दोष साबित नहीं कर पाती है। इसलिए भ्रष्टाचार के तकरीब 32 फीसद मामलों में सीबीआइ नाकाम हो जाती है।