इदे ग़दीर इसलिए सबसे बड़ी है ईद | कामिल हुआ है दीन खुदा क ग़दीर में ||
लखनऊ 29 सितम्बर |कल 18 ज़िल्हिज्जा को मुसलमानों के आखरी पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद मुस्तुफा (स.अ.व.व ) ने अपने आखरी हज के दरमियान अल्लाह के हुक्म से अपने उत्तराधिकारी क एलान किया था |एक बड़े मैदान में आने वाले हाजियों क इंतज़ार किया और जो आगे निकल गए थे उन हाजियों को वापिस बुलाया गया ऊंट पर मिंबर बनाया गया और जब सब हाजी जमा हो गए तो मोहम्मद साहब ने मिंबर पर जाकर हज़रत अली (अ.स) को हाथों पर बलन्द किया और कहा आज से जिसका -जिसका मैं मौला उसका -उसका अली मौला | इस मौके पर सभी हाजियों ने हज़रत अली (अ.स ) को मुबारकबाद पेश की | इसी 18 ज़िल्हिज्जा को अल्लाह का दीन कामिल हुआ | इस विलायत के एलान के लिए अल्लाह ने अपने दूत जिब्रील से कहा कि रसूल से कह दो कि अगर आज विलायत क एलान नहीं किया तो समझों कारे रिसालत ही अंजाम नहीं दिया | हालाँकि हज़रत अली (अ.स) को मुबारकबाद देने वाले अधिकतर लोगों ने आखरी नबी कि शहादत के बाद इस एलान को भुला दिया और हज़रत अली (अ.स) को कम उम्र की वजह से खिलाफत में दुनियाबी हिसाब से चौथा खलीफा माना |मगर शिया सम्प्रदाय ने हज़रत अली (अ.स) को पहला खलीफा ही माना, क्योंकि उन लोगों के मुताबिक़ रसूल वही कहता है जो अल्लाह कहता है , इसलिए रसूल की नाफरमानी अल्लाह की नफरमानी है|
इसीलिए शियों में ये सबसे बड़ी ईद का रोज़ माना गया है | इसमें यानि ईदे ग़दीर में लोग नए लिबास पहनते हैं ,एक दूसरे के गले मिलकर मुबारकबाद दी जाती है ,घरों पर नज़रें होती हैं और नमाज़े ईदे ग़दीर भी होती है |यही नहीं शबभर इबादतगाहों में जश्न भी आयोजित होते हैं |लखनऊ की 110 मस्जिदों में नमाज़े ईदे ग़दीर होती है |इनमे मुख्य रूप से पुराने लखनऊ के रोज़ा ए काज़मान में स्थित मस्जिद ए कूफ़ा में होने वाली नमाज़ में नमाज़ियों की सबसे बड़ी संख्या होती है |इसके अलावा भी बड़े इमामबाड़े , छोटे इमाम बाड़े , कर्बला मुंशी फ़ज़ले हुसैन , कर्बला तालकटोरा , कर्बला इमदाद हुसैन ,खुमैनी मस्जिद ,बड़ी मस्जिद ,फिरोज़ी मस्जिद ,दरगाह हज़रत अब्बास ,इमाम बाड़ा आग़ा बाक़िर,ग़ार वाली कर्बला के अतिरिक्त इमाम बाड़ा शाह नजफ़ भी शामिल है |किसी शायर ने क्या खूब कहा है | इदे ग़दीर इसलिए सबसे बड़ी है ईद | कामिल हुआ है दीन खुदा क ग़दीर में ||