राम मंदिर पर फैसला देने वालों में कोई चीफ जस्टिस तो कोई गवर्नर
जकी भारतीय
लखनऊ । अयोध्या में बाबरी मस्जिद विघंसन के बाद सर्वोच्च न्यायालय के पांच जजों के फैसले के बाद अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हुआ था। मंदिर – मस्जिद विवाद के बाद से जहां भारतीय जनता पार्टी पूर्ण रूप से अस्तित्व में आई और प्रदेशों से होती हुई केंद्र में छा गईं तो वहीं समाजवादी पार्टी ने भी कार सेवकों पर गोली चलवाकर कई वर्षों तक प्रदेश में राज किया। इस बीच देश में नफरत के सूरज का उजागर हुआ जिसकी धूप अधिकतर घरों के आंगन तक पहुंच गई । सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि पर जो फैसला दिया उसका हिंदू संप्रदाय ने स्वागत किया और जश्न मनाया। लेकिन मुसलमानों ने इस फैसले पर हैरत जाहिर की । क्योंकि ये साबित नहीं हो सका था कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई है। बहरहाल फिर भी मुस्लिम संगठनों ने इस मामले पर चुप्पी साधी और न्यायालय का सम्मान किया। न्यायालय के आदेश के बाद से आजतक हिंदू मुस्लिम दोनों समुदायों ने एकता का परिचय देते हुए आपस में भाईचारा कायम रखा है। जो अपने आप में बहुत बड़ी सफलता है । जिसकी प्रशंसा करनी होगी।
जैसे जैसे २२ जनवरी निकट आ रही है वैसे वैसे लोगों के मन में तरह तरह के प्रश्न उठ रहे हैं। कुछ लोग ये जानने का प्रयास करते हुए नजर आ रहे हैं कि राम मंदिर का फैसला सुनाने वाले कितने जज थे ? क्या नाम थे? और मौजूदा समय में वो किन पदों पर तैनात हैं ?
बताते चलें कि फ़ैसला सुनाने वालों में पांच जज शामिल थे। इनमे तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर के नाम शामिल थे।
इन 5 जजों की संवैधानिक पीठ ने एक मत से फैसला सुनाया था। जिसमें विवादित जमीन राम जन्मभूमि को तथा बाबारी मस्जिद को अलग से 5 एकड़ जमीन देने का फ़ैसला दिया था।
सौभाग्य से सभी जजों को मिला है राम मंदिर में आने का न्यौता
बता दें कि इन पांच जजों के फैसले के बाद से ही अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हुआ। वहीं, राम जन्मभूमि ट्रस्ट ने फैसला सुनाने वाले इन सभी जजों को 22 जनवरी के समारोह के लिए निमंत्रण पत्र दिया है।
इस समय क्या कर रहे राम मंदिर पर फैसला सुनाने वाले जज ?
सब जानते है कि देश में औरों की तरह जजों का भी कार्यकाल तय होता है। अन्य अधिकारियों की तरह जज भी रिटायर होते हैं। फैसला सुनाने वाली पीठ में शामिल रहे चार जज अलग-अलग समय पर रिटायर हो गए। वहीं, एक जज अभी भी सुप्रीम कोर्ट में है।
रंजन गोगोई हैं राज्यसभा सांसद
देश के 46वें चीफ जस्टिस रहे रंजन गोगोई साहब 17 नवंबर को यानी फैसले के अगले ही हफ्ते रिटायर हो गए। रिटायरमेंट के चार महीने बाद 16 मार्च 2020 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्यसभा के लिए मनोनीत कर दिया। इसी साल जुलाई के महीने में सांसद रंजन गोगोई को विदेश मंत्रालय को लेकर बनी पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमिटी यानी संसद की स्थायी समिति के सदस्य के तौर पर नियुक्त किया गया है।
अगले साल रंजन गोगोई ने विदेश मंंत्रालय की पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमिटी से इस्तीफा दे दिया और सूचना, संचार कमिटी के सदस्य हो गए. लेकिन फिर 2022 में उन्होंने इस कमिटी से भी इस्तीफा दे दिया और वापस विदेश मंत्रालय वाली पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमिटी ही के सदस्य हो गए।
इस समय हैं वाइस चांसलर शरद अरविंद बोबडे
पूर्व मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई के रिटायर हो जाने के बाद 18 नवंबर 2019 को शरद अरविंद बोबडे देश के मुख्य न्यायधीश बनाए गए। बोबडे साहब कोर्ट में गोगोई साहब के बाद सबसे वरिष्ठ जज थे। ऐसे में वह देश के 47वें चीफ जस्टिस बन गए। 23 अप्रैल 2021 तक यानी करीब 17 महीने वह इस पद पर रहें। रिटायर होने के बाद बोबडे महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के तौर पर काम कर रहे हैं।
अशोक भूषण हैं NCLAT के मौजूदा अध्यक्ष
राम जन्मभूमि के पक्ष में फैसला देने वाली पीठ में शामिल रहे पूर्व न्यायधीश अशोक भूषण 4 जुलाई 2021 के सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो गए। पांच साल से कुछ महीने अधिक सर्वोच्च अदालत में बिताने के बाद अशोक भूषण साहब सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए। रिटायर होने के चार महीने बाद ही केंद्र सरकार ने इन्हें नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLAT) यानी राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण के अध्यक्ष बना दिया। वह चार साल के लिए इस पद पर नियुक्ति हुए है।
एस अब्दुल नजीर हैं राज्यपाल
एस. अब्दुल नजीर भी अयोध्या विवाद पर फैसला सुनाने वाली पीठ में शामिल थे। पिछले साल करीब 6 साल देश की सबसे बड़ी अदालत में बिताने के बाद 4 जनवरी 2023 को वे सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त हो गए। रिटायर होने के दो महीने के भीतर एस. अब्दुल नजीर को आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त कर दिया गया। नजीर साहब फिलहाल आंध्र प्रदेश के 24वें राज्यपाल के तौर पर अपनी भूमिका निभा रहे हैं। पूर्व जस्टिस अब्दुल नजीर की नियुक्ति और रंजन गोगोई के मनोनयन पर यह सवाल उठा था कि क्या जज को रिटायरमेंट के बाद इस तरह का पद संभालना चाहिए या नहीं?
50वें चीफ जस्टिस हैं डी वाई चंद्रचूड़
शरद अरविंद बोबडे साहब के रिटायर होने के बाद एन वी रमना और यूयू ललित सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बने। पूर्व जस्टिस उदय उमेश ललित के सेवानिवृत्त होने के बाद वरिष्ठता के आधार पर धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, के रिटायर होने के बाद वह देश के 50वें चीफ जस्टिस बनें। फैसला सुनाने वाले पांच जजों में से चार रिटायर हो चुके हैं। बस यही डीवाई चंद्रचूड़ साहब अभी सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत हैं। जस्टिस चंद्रचूड़ का कार्यकाल इस साल नवंबर तक है। लंबे अरसे के बाद डीवाई चंद्रचूड़ के तौर पर देश की सर्वोच्च अदालत को दो साल के लिए एक चीफ जस्टिस मिला है।