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मैं तो आज़ाद परिन्दा हूँ ज़माने वालों कौन कर सकता है ज़ुल्फों में गिरफतार मुझे

आज से पाठकों के लिए हम ला रहे हैं ग़ज़लों और कविताओं का अनमोल ख़ज़ाना |

                    ग़ज़ल

इश्क़ के बदले में ये साहिबे दस्तार मुझे | 
देखना ये है कि क्या देते हैं सरकार मुझे ||

मुफलिसी लेके जो आयी सरे बाज़ार मुझे |
देखने आ गए हैरत से ख़रीदार मुझे ||

मेरी तस्वीर को मग़रूर बताते हैं वही |
कल जो कहते थे बड़े फख्र से खुद्दार मुझे ||

अब जो मिलते हैं तो सीने से लगा लेते हैं |
वो जो नज़रों से गिरा देते थे हर बार मुझे ||

मैं हकीक़त जो बयां करता हूँ दुनिया वालों |
दिल से देते हैं दुआ साहीबे किरदार मुझे ||

सब सियासत है सियासत की हैं बातें इसमे |
अच्छी लगती नहीं ये सूर्खिये अख़बार मुझे ||

मैं तो आज़ाद परिन्दा हूँ ज़माने वालों |
कौन कर सकता है ज़ुल्फों में गिरफतार मुझे ||

मैने अशआर के हर सम्त लगाये हैं शजर |
इसलिय कहते हैं ग़ज़लों का ज़मीदार मुझे ||

बात गर हक़ हो तो बेखौफ कहा करता हूँ |
खूब आता है रज़ा जुरअते इन्कार मुझे ||


नतीजा ए फिक्र

सय्यद मुस्तफा रज़ा नकवी
ऊर्फ रज़ा सफीपुरी

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