मुलाहेज़ा फरमाये एक ताज़ा ग़ज़ल ……..
चमन प आई है जब जब बहार सावन मे
हुए हैं चेहरा -ए- गुल खुशगवार सावन मे
चमन मे देख के गूल पर निखार सावन मे
दिलों मे और भी बड़ता है प्यार सावन मे
चले भी आओ कि तिशनालाबी बुझादो मिरी
झुलस रहा है दिले बेक़रार सावन मे
ये किसकी याद ने झूला झुला दिया आ कर
हुईं जो आखें मिरी अश्कबार सावन मे
वो दिल की बागिया मे कियोंकर नआऐ बनके किशन
सदायें देता है राधा का प्यार सावन मे
मिटा दिया उसे अशकों की तेज़ बारिश ने
जो दिल प छाया था गार्द -ओ – गुबार सावन मे
वो जिस के हुस्न ने बख्शी हयात फूलों को
उसी का करता हूँ मैं इन्तिजार सावन मे
खिजाँ परस्त हावाओं से ये बाता दो ‘रज़ा,
खिलेंगे गुँचा -ओ- गुल बेशुमार सावन मे
नतीजऐ फिक्र मुस्तफा रज़ा
(रज़ा सफीपुरी )
मो० न० 9076745555…