प्रिय पाठकों
आप द्वारा ग़ज़ल के इस कॉलम को सराहे जाने का बहुत बहुत धन्यवाद | जिस दिन से ग़ज़लों का सिलसिला शुरू किया है उस दिन से आप लोगों ने इसे पसंद भी किया और बहुत से शायरों ने अपनी ग़ज़ल भी भेजी | अगले सप्ताह हम आपके लिए जो ग़ज़ल लाएंगे वो हैदराबाद के शायर मुमताज़ हैदराबादी की होगी | बाहरहाल इस समय जो ग़ज़ल प्रस्तुत की जा रही है वो ट्वीटर की एक हर दिल अज़ीज़ शायरा की है | उन्होंने जहाँ ग़ज़ल के इस कालम की बहुत प्रशंसा की वहीँ अपनी ग़ज़ल भेजकर मेरा मनोबल बढ़ाया | मैं उस शायरा अना हयात का बहुत आभारी हूँ |
पेश है मोहतरमा “अना हयात” साहिबा की बेहतरीन ग़ज़ल |
दर्द -ओ-ग़म टीस, तड़प ,जख्म जो आंहें दे दीं |
क्यों मुझे इश्क में उसने यह सजाएं दे दीं ||
उसका हो जाता है दीवाना जो मिल ले उससे |
तूने मालिक उसे कुछ ऐसी अदाएं दे दीं ||
मुख़्तसर सी हंसी होठों पा सजाकर मेरे |
उम्र भर के लिए उसने मुझे आंहें दे दीं ||
उसकी फ़ितरत में वफ़ा कम है,खबर थी मुझको |
इसलिए उसने मुझे अपनी जफ़ाएं दे दीं ||
तू किसी का रहे हँसता रहे आबाद रहे |
मेरे टूटे हुए दिल ने यह दुआएं दे दीं ||
अपने महबूब की फितरत को समझ भी ना सकीं |
जाने क्यों रब ने मुझे ऐसी निगाहें दे दीं ||
दिल को बहलाना ही शेवा था, मुझे इल्म भी था |
फ़ितरतन मैंने उसे सारी वफाएं दे दीं |
मैंने चाहा था कि एक मैं ही रहूं दिल में तेरे |
तूने दिल में मगर हर एक को राहें दे दीं ||
मैं वफादार भी, खुद्दार भी ,हस्सास “अना” |
मेरे मालिक मुझे क्यों इतनी ख़ताएँ दे दीं ||