बरसात भी न रोक सकी अज़ादारों के क़दम
(आमरा रिज़वी)
लखनऊ |अवध के बादशाह मोहम्मद अली शाह और आसिफुद्दौला द्वारा स्थापित किया गया शाही मोम और अबरक का जुलूस आज अपने रिवायती अंदाज़ से इमाम बाड़ा आसिफुद्दौला (बड़े इमाम बाड़े) से सांय 7 बजे निकाला गया|हुसैनाबाद ट्रस्ट द्वारा उठने वाले इस जुलूस का आग़ाज़ तिलावते कलमे पाक से किया गया और जिसके फौरन बाद धर्मगुरु मोहम्मद हैदर ने आयोजित मजलिस को सम्बोधित किया | उन्होंने कहा के 28 रजब को हज़रत इमाम हुसैन अस ने मदीने से कर्बोबला के लिए सफर शुरू किया था और उनका ये काफिला 2 मोहर्रम को कर्बोबला पंहुचा |उन्होने कहा के जो रास्ता आज सिर्फ 3 घंटे में तय हो जाता है उसी रास्ते के लिए लगभग इमाम हुसैन अस 6 माह का समय लगा था |उन्होने कहा की हज़रत इमाम हुसैन अस और यज़ीद के लिए कुछ झूठे रावियों का कहना है की कर्बला की जंग बादशाहत के लिए हुई थी जबकि उन जाहिल रावियों को ये पता नहीं की हज़रत इमाम हुसैन अस को अगर हुकूमत की तमन्ना होती तो यज़ीद के दिए गए समझौते पर वो राज़ी हो जाते मगर वो जानते थे की अगर वो यज़ीद से बैयत (समझौता ) कर लेंगे तो इस्लाम को यज़ीद बदल देगा लोगो के साथ अत्याचार ,महिलाओ के साथ अभद्रता ,शराब खोरी ,हलाल को हराम लोगो को जबरन इस्लाम कबूल करवाना जैसी चीज़े इस्लाम में शामिल हो जाएगी, इसलिए हज़रत इमाम हुसैन अस ने यज़ीद से समझौता नहीं किया जिसपर यज़ीद ने नाराज़ होकर हज़रत इमाम हुसैन अस का क़त्ल करने के लिए फरमान जारी कर दिया और मदीने में जब हज़रत इमाम हुसैन अस काबे में गए तो उन्होने महसूस किया की यज़ीद का लश्कर अपनी अपनी तलवारे लिए हुए उनके क़त्ल पर आमादा है |
ये देखकर उन्होने यज़ीद के लश्कर से कहा के में नहीं चाहता की काबे जैसे पाक स्थान पर किसी का लहू बहे उन्होने कहा की अगर यज़ीद ये समझता है की में उसकी हुकूमत के खिलाफ इंक़ेलाब लाना चाहता हु तो उससे कह दो की मुझे उस जगह चला जाने दे जहाँ मुसलमान तो नहीं लेकिन इंसान रहते है उस वक्त उन्होने जहाँ जाने की इच्छा जताई थी वो कोई और मुल्क नहीं बल्कि हमारा भारत था |लेकिन उसके बावजूद यज़ीद ने कहा की अगर तुम समझौता नहीं करोगे और हमारी शर्तो पर हस्ताक्षर नहीं करोगे तो तुमको किसी ऐसी जगह जाना होगा जो जंगल हो जब हज़रत इमाम हुसैन अस ने कर्बोबला जाना बेहतर समझा| कर्बोबला का यदि अनुवाद किया जाये तो इसको दर्द और मुसीबत की जगह कहा जायेगा |इसी क़ाफिले की याद में आज का शाही मोम की ज़री का जुलूस निकाला जाता है|मौलाना ने जब हज़रत इमाम हुसैन अस की शहादत का उल्लेख किया तो अज़ादारों की आँखे भीग गयी और या हुसैन की आवाज़े बलन्द होने लगी ये अलग बात है की ज़ोरदार बारिश ने अज़ादारों का हज़रत इमाम हुसैन अस का जुलूस और उनके गम को आज़माने की लिए अज़ादारों का इम्तिहान लिया लेकिन जिस ग़म को मनाने की लिए लोगो ने तीर ,तलवार ,नैज़े ,भालो की परवाह नहीं की और उनका ग़म इसी शानों-शौकत से चौदह सौ बरस से मनाया जा रहा है तो अज़ादारों को ये हल्की सी बरसात क्या रोक सकती है |बहरहाल मजलिस की बाद ये जुलूस साये 8 बजे बड़े इमामबाड़े से बाहर निकल सका |इस जुलूस में शाही मोम की ज़री की आलावा अबरक की ज़री भी शामिल थी और साथ में ठेलो पर फुलवारी सजी हुई थी, मेंहदी की आराइश भी साथ साथ चल रही थी इसमें 6 निजी बैंड और एक होमगार्ड बैंड भी शामिल था जो सोज़नाक तर्ज़ पर हज़रत इमाम हुसैन अस की मसायब बयान कर रहा था जिसे सुनकर अज़ादार रो रहे थे |इसके आलावा इस जुलूस में हाथी ,घोड़े ,और ऊठ भी शामिल होकर बिलकुल हज़रत इमाम हुसैन अस की सफर की मंज़रकशी कर रहे थे |धीरे -धीरे ये जुलूस बड़े इमामबाड़े से होता हुआ रूमी दरवाज़ा,नीबू पार्क, लाजपत नगर रोड,घंटाघर होते हुए छोटे इमामबाड़े पंहुचा जहाँ अज़ादारों ने देर तक अपने हुसैन को याद करते हुए मातम किया और उसके बाद जुलूस का सिलसिला ख़त्म हो गया |
इस जुलूस की हिफाज़त के मद्देनज़र पुलिस ने भारी सुरक्षा व्यवस्था का इंतिज़ाम किया था और इसकी निगरानी खुद वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार कर रहे थे इसके आवला भी पुलिस के आलाधिकारी भी साथ में मौजूद थे |