क्यों नहीं होना चाहिए देश को तोड़ने वाले पत्रकारों के विरुद्ध एफआईआर ?
ज़की भारतीय
लखनऊ,23 मई | वैसे तो देखने में सुप्रीम कोर्ट में पत्रकारों की हिमायत में की गई याचिका में जहाँ सुप्रीम कोर्ट को चतुराई के साथ गुमराह करने का प्रयास किया गया है , अमर्यादित टिप्पड़ी करने वाले एंकर को फिलहाल बचाने का प्रयास किया गया है , लेकिन जब मुझ जैसा अज्ञानी ये बात समझ सकता है कि ये जाचिका न तो पत्रकार की हिमायत में की गई है और न ही पत्रकारों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए की गई है | ये एक ख़ास उद्देश्य के तहत याचिका दायर की गई है ,जिसमे उनलोगों को पत्रकारिता की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया जाए जो पत्रकार हैं ही नहीं | जिनकी हिमायत में सुप्रीम कोर्ट में याचिका की गई है दरहक़ीक़त वो बद्तमीज़ वक्ता तो हैं ,गोदी मिडिया की संज्ञा प्राप्त करने वाले तो हैं,लेकिन उन्हें किसी भी हाल में पत्रकार नहीं कहा जा सकता | यहाँ ये बताना ज़रूरी है कि पत्रकार की संज्ञा है क्या ? दरअस्ल पत्रकार उसे कहते हैं जो कहीं से खबर लाकर पाठक तक पहुंचाए | अब पाठक के हित की खबर पाठक तक दो माध्यमों से पहुंचने लगी है ,पहले नंबर पर प्रिंट मिडिया दूसरे नंबर पर इलेक्टॉनिक मिडिया ,लेकिन प्रिंट मिडिया का नांम बहुत पहले हुआ था | पहले निकलने वाले समाचार पत्र का आरम्भ कागज़ पर नहीं बल्कि कपडे पर हुआ था | कलकत्ते से कपडे पर पहला समाचार पत्र 29 जनवरी 1780 को प्रकाशित हुआ ,अब आप खुद समझ सकते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक मिडिया प्रिंट मिडिया से आयु में कितना छोटा है | लेकिन दोनों का काम खबर पहुंचने का है ,इसलिए दोनों का सम्मान करना चाहिए क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी भी साधन द्वारा किसी की बात पाठक तक पहुंचाए तो वो पत्रकार ही कहा जाएगा ,लेकिन किसी भी दशा में डिबेट करने वाले को पत्रकार नहीं कहा जा सकता | ऐसे लोग पत्रकारिता की श्रेणी में नहीं गिने जा सकते और न ऐसा करने वाले को पत्रकार कहा जा सकता है | क्योंकि ये पाठक तक ख़बरें नहीं झगडे पहुंचाते हैं |
ये याचिका मुंबई में रहने वाले घनश्याम उपाध्याय ने अपने वकील विष्णु शंकर जैन के जरिये दाखिल की है। याचिका में कुछ घटनाओं का जिक्र करते हुए कहा गया है कि इस बारे में कोई स्पष्ट कानून न होने की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट को उचित दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है और सुप्रीम कोर्ट हमेशा से मीडिया की अभिव्यक्ति की आजादी का हिमायती और रक्षक रहा है। कुछ असंतुष्ट लोगों द्वारा रुटीन में खबरों अथवा डिबेट पर मीडिया के खिलाफ बेवजह की एफआइआर नहीं दर्ज होनी चाहिए । मीडिया को इससे छूट मिलनी चाहिए ताकि वे बिना किसी भय के स्वतंत्र होकर अपने कर्तव्य का पालन कर सकें। खबर या डिबेट पर मीडिया अथवा पत्रकार के खिलाफ एफआइआर दर्ज होने के बारे में दिशानिर्देश तय करने की मांग की गई है।
कहा गया है कि प्रेस काउंसिल आफ इंडिया (पीसीआइ) या न्यायिक अथारिटी की मंजूरी के बगैर किसी खबर या डिबेट पर मीडिया अथवा पत्रकार के खिलाफ प्राथमिकी (एफआइआर) दर्ज नहीं होनी चाहिए। हालांकि याचिका पर सुनवाई की अभी कोई तारीख तय नहीं है।याचिका में मांग की गई है कि दिशा-निर्देश तय किए जाएं कि मंजूरी देने वाली अथारिटी तय समय के भीतर उपरोक्त धाराओं में एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी मांगने वाली अर्जी का निपटारा करेगी। कहा गया है कि इस बारे में जारी की जाने वाले दिशा निर्देश उन्हीं अखबारों या न्यूज चैनल पर लागू हों जिनकी एक निश्चित पाठक या दर्शक संख्या हो। यह संख्या कोर्ट तय कर सकता है।
याचिका में मांग है कि किसी खबर या डिबेट पर मीडिया अथवा पत्रकार के खिलाफ आइपीसी की धारा 295ए, 153, 153ए, 153बी, 298, 500, 504, 505(2),506(2) और साथ में 120बी के तहत एफआइआर और अभियोजन के लिए प्रेस काउंसिल आफ इंडिया या कोर्ट द्वारा तय की गई न्यायिक अथारिटी की मंजूरी जरूरी होनी चाहिए। मालूम हो कि ये धाराएं समुदायों के बीच सौहार्द बिगाड़ने व मानहानि के अपराध से संबंधित हैं। बिना देश को तोड़ने वाले पत्रकारों के विरुद्ध प्राथमिकी याचिका में मांग की गई है कि दिशा-निर्देश तय किए जाएं कि मंजूरी देने वाली अथारिटी तय समय के भीतर उपरोक्त धाराओं में एफआइआर दर्ज करने की मंजूरी मांगने वाली अर्जी का निपटारा करेगी। कहा गया है कि इस बारे में जारी की जाने वाले दिशा निर्देश उन्हीं अखबारों या न्यूज चैनल पर लागू हों जिनकी एक निश्चित पाठक या दर्शक संख्या हो। यह संख्या कोर्ट तय कर सकता है।