लखनऊ (सवांददाता) भारतीय बैंकों पर बढ़ते हुए कर्ज को लेकर पूर्व रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने दिए अपने जवाब में पूर्व यूपीए सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है | इस मामले में बीजेपी सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की प्राक्कलन समिति ने उनको पत्र भेजकर समिति के समक्ष उपस्थित होकर एनपीए के मामले पर जानकारी देने को कहा था, जिसके जवाब में उन्होंने ये आरोप पूर्ववती यूपीए सरकार पर लगाया है| जानकारी के अनुसार राजन ने अपने भेजे गए जवाब में कहा है कि घोटालों और जांच की वजह से सरकार के निर्णय लेने की गति धीमी होने की वजह से एनपीए बढ़ते गए।
राजन ने जोशी की अध्यक्षता वाली समिति के सामने बताया कि बैंको ने बड़े लोन देने में सावधानी नहीं बरती। जिसके कारण 2006 के बाद विकास की गति धीमी पड़ गई, बैंकों की वृद्धि का जो आकलन था वो अवास्तविक हो गया। 2008 में आई आर्थिक मंदी के बाद उनको उतना लाभ नहीं हुआ जितनी उन्हें आशा थी।
उन्होंने ये भी बताया कि बैंकों ने लोन को नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स में बदलने से बचाने के लिए और अधिक लोन दिए। पूर्व प्रमुख आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने एनपीए की पहचान करने और इसे हल करने की कोशिश के लिए राजन की तारीफ की थी, जिसके बाद संसदीय समिति ने उन्हें इस मुद्दे पर सलाह देने के लिए आमंत्रित किया था।
बताते चलें कि इस वक्त सभी बैंक एनपीए की समस्या से जूझ रहे हैं। दिसंबर 2017 तक बैंकों का एनपीए 8.99 ट्रिलियन रुपये हो गया था जो कि बैंकों में जमा कुल धन का 10.11 फीसदी है। कुल एनपीए में से सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों का एनपीए 7.77 ट्रिलियन है।
गौरतलब है कि कुछ दिनों पूर्व ही नीति आयोग के वाइस चेयरमैन राजीव कुमार ने आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि आर्थिक कमज़ोरी के लिए राजन की नीतियां जिम्मेदार थीं, न कि नोटबंदी।
राजीव कुमार ने कहा कि नोटबंदी की अवधि के दौरान अर्थव्यवस्था में आई तंगी 500 और 1000 रुपये के नोटों को अमान्य करने के कारण नहीं आई थी, बल्कि उस समय अर्थव्यवस्था में गिरावट का रुख जारी था, ग्रोथ रेट लगाने के बाद ये छह तिमाहियों में गिरी थी।
कुमार ने कहा कि राजन के कार्यकाल में लाई गईं प्रणालियों के कारण स्ट्रैस्ड नॉन पर्फार्मिंग एसेट्स (एनपीए) में बढ़ोतरी हुई और इसी वजह से इंडस्ट्री को बैंकिंग सेक्टर से लोन मिलना बंद हो गया।