लखनऊ,संवाददाता! पुराने लखनऊ की 156 वर्ष पुरानी बज़्म इदराए शेरो अदब की जानिब से आज इदारे के अहम् रूक्न, शायर इरफ़ान जंगीपुरी की रिहाइश गाह कमरख वाली बगिया काज़मैन रोड पर शाम चार बजे एक तरही मुशायरे का इनऐकाद किया गया ! मुशायरे की सदारत साबिक़ इन्फॉर्मेशन अफसर जनाब वज़ाहत हुसैन रिज़वी ने की,जबकि मुशायरे की निज़ामत के फ़राएज़ मशहूर शायर खुर्शीद फ़तेहपुरी ने निभाए और इस मुशायरे के कन्वेनर फरीद मुस्तुफा साहब थे !
आज के तरही मुशायरे में जब मदहु शोअराए कराम ने अपने तरही कलाम पेश किये तो मौजूद सामेईन ने खूब दाद ओ तहसीन से नवाज़ा ! आज जिन शोअराए कराम को मदहु किया गया था उन्होंने दी गई तरह ,”फख्र से देखते हैं साहिबे किरदार मुझे ” में ही ग़ज़ल पेश की ! जिन्होंने तरही ग़ज़ल पेश की उनमें जावेद बर्क़ी साहब, खुर्शीद फ़तेह पुरी साहब,इरफ़ान ज़ंगीपुरी साहब,हबीब शारबी साहब,,फरीद मुस्तुफा साहब,,फरीद मुस्तुफा साहब,ज़की भारती साहब, ताज लखनवी साहब,रजा सफ़ीपुरी साहब,आबिद नज़र साहब और जिया साहब समेत कई शायरों ने अपना अपना कलाम पेश किया !
फरीद मुस्तुफा साहब ने जब ये शेर पढ़ा तो
तालियों की आवाज़ ने उनकी हौसला अफ़ज़ाई की !
हुस्न कुछ और हवस और मोहब्बत कुछ और!
हाँ बताता है यही मिस्र का बाजार मुझे !!
हबीब शारबी साहब के दो शेर हाज़िर हैं
अब मुझे धुप की शिद्दत का कोई खौफ नहीं!
मिल गया आपका अब सायए दीवार मुझे !!
मैं था आज़ाद परिंदा मेरी क़िस्मत देखो!
कर लिया उनकी मोहब्बत ने गिरफ्तार मुझे !!
ज़की भारती की ग़ज़ल के दो मतले पेशे खिदमत हैं
उससे करना है अभी प्यार का इज़हार मुझे।
अए खुदा बख्श दे तू कुव्वते गुफ्तार मुझे।।
कत्ल जब कर चुके बैय्यत के तलबगार मुझे।
फिर ज़माने में बनाया गया मेयार मुझे।।
रज़ा सफ़ीपुरी के यहाँ दो शेर हाज़िरे खिदमत हैं
मेरे हालात मेरे हक़ में नहीं हैं लेकिन!
फिर भी कुछ लोग समझते हैं ज़मीदार मुझे !!
मेरी तस्वीर को मगरूर बताते हैं आज!
कल जो कहते थे बड़े फख्र से खुद्दार मुझे !!
इसी तरह से तमाम मदहु शायरों ने बेहतरीन ग़ज़लें पेश की !