लखनऊ (सवांददाता) मनुष्य अपने आराम के लिए उन चीज़ों का प्रयोग कर रहा है जो उसके लिए खुद हानिकारक साबित होने वाला है| मुसलमानों के पवित्र ग्रन्थ कुरआन में ईश्वर ने कहा है कि मैंने धरती को बैलेंस में रखने के लिए धरती पर पहाड़ों को ठोक दिया है| अब स्पस्ट है कि हम पहाड़ी क्षेत्र में न रहने के बावजूद अपने शहर में जहां पत्थरों की सड़के बना रहे है वहीँ हम अपने घरों को पत्थरों से सजा रहे है| ज़ाहिर है कि हम धरती का संतुलन बिगाड़ रहे है, ऐसी स्थिति में पृथ्वी कब डोल जाये कुछ पता नहीं| दूसरी बात ये है कि ग्लोबल वार्मिग के कारण हमारी धरती पर खतरा बढ़ता जा रहा है। एक रिसर्च में आगाह किया गया है कि अगर हम नहीं सुधरे तो वैश्विक तापमान चार से पांच डिग्री सेल्सियस और समुद्र के जलस्तर में 60 मीटर तक की बढ़ोतरी हो सकती है। इसकी वजह से धरती के कई स्थान निर्जन हो सकते हैं। हमारी गतिविधियां ऐसी ही रहीं तो पेरिस जलवायु समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के बावजूद यह खतरा टाला नहीं जा सकता।
शोधकर्ताओं की माने तो ग्लोबल वार्मिग को 1.5 से दो डिग्री सेल्सियस के दायरे में रखने के बावजूद हालात बेहद कठिनाई भरे हो सकते हैं। ऑस्ट्रेलिया नेशनल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता विल स्टीफन ने कहा, ‘ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन धरती पर तापमान वृद्धि का इकलौता कारक नहीं है।
हमारे अध्ययन से जाहिर होता है कि मानव गतिविधियों के कारण तापमान में दो डिग्री सेल्सियस तक की बढ़ोतरी हो सकती है। ऐसे में अगर हम ग्रीनहाउस उत्सर्जन को रोक भी देते हैं तो भी ग्लोबल वार्मिग बढ़ सकती है। इस हालात से बचाव के लिए इंसानी गतिविधियों को और नियंत्रित किए जाने की जरूरत है। इससे धरती के दोहन को रोका जा सकता है।’
स्वीडन के स्टाकहोम रिजिल्यन्स सेंटर के शोधकर्ता जॉन रॉकस्टोर्म ने कहा, ‘भट्टी बनने की आशंका अगर हकीकत हो गई तो धरती के कई स्थान निर्जन हो जाएंगे।’ जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च के निदेशक एच जोकिम ने कहा, ‘हमारे अध्ययन से यह जाहिर होता है कि औद्योगिक काल के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से हमारे पर्यावरण पर किस तरह का दबाव पड़ा है।’
स्टीफन के अनुसार, इस समय वैश्विक औसत तापमान पूर्व औद्योगिक काल की तुलना में एक डिग्री सेल्सियस से थोड़ा ज्यादा है। अभी हर दशक में 0.17 डिग्री सेल्सियस की दर से तापमान बढ़ रहा है।
मानव गतिविधियों की प्रक्रिया को फीडबैक के तौर पर जाना जाता है। इन फीडबैक में समुद्र की तलहटी में मीथेन हाइड्रेट्स में गिरावट, समुद्र में बैक्टीरिया की वृद्धि, अमेजन और उत्तरी जंगलों के खत्म होने के अलावा उत्तरी गोलार्द्ध, आर्कटिक और अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों का सीमित होना शामिल है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक, धरती को भट्टी बनने से रोका जा सकता है। इसके लिए ना सिर्फ कार्बन डाईआक्साइड और दूसरी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लानी होगी बल्कि वनों, कृषि और मृदा प्रबंधन को बेहतर करना पड़ेगा। ऐसी तकनीक का भी इस्तेमाल करना होगा जिससे वातावरण और भूमि के नीचे संग्रहित कार्बन डाईआक्साइड को हटाया जा सके।