गर गुलशने दुनिया मे ये निक्हत नही होती | फूलों मे कभी जीने की हसरत नहीं होती ||
एक ताज़ा ग़ज़ल निक्हत के उनवान से
मुलाहीजा करें
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गर गुलशने दुनिया मे ये निक्हत नही होती
फूलों मे कभी जीने की हसरत नहीं होती
निक्हत की अगर बज्म में शिरकत नहीं होती
गुँचों के लबों पर ये मसर्रत नहीं होती
फूलों से मुहब्बत है जो निक्हत को चमन मे
इस वास्ते खुशबू की तिजारत नहीं होती
गर दाईरा एक गुल है तो मरकज़ है ये निक्हत
मरकज़ से जुदा फूल की कीमत नहीं होती
निक्हत की कशिश खैच के ले आती है सब को
ये किसने कहा गुल से मुहब्बत नहीं होती
निक्हत की फ़जीलत को बयां कैसे करूँ मैं
खुशबू की जहाँ मे कोई कीमत नहीं होती
खिलते ना कभी बागे मुहब्बत में ”रज़ा,, गुल
कलियों प जो निक्हत की इनायत नहीं होती
नतीज-ऐ- फिक्र
सै० मुस्तफा रजा नक़वी
(रज़ा सफीपुरी)
मो० न० 9076745555….
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