लखनऊ, संवाददाता। दिल्ली में 23 फरवरी को सियासत की आग ने 25 की रात तक शांत दिल्ली को दंगे की ज़ंजीरों में जकड़ दिया। इसमें क्या क्या हुआ ,दंगा कैसे भड़का ,किसने भड़काया , कैसे आगज़नी हुई,कैसे पुलिस पर हमला हुआ, कौन लोग पुलिस के साथ डंडे लिए हुए देखे गए,किसने ख़ुद को प्रशासन समझा। ये आप सबको अबतक पता चल चुका है।
किसी धरने प्रदर्शन का आजतक किसी नेता द्वारा विरोध नहीं किया गया,फिर क्या कारण है कि CAA का विरोध कुछ लोगों के हलक़ में नहीं उतर रहा है। इसके पूर्व भी भी सैकड़ों मुद्दों पर भाजपा सहित सभी राजनीतिक पार्टियां धरने प्रदर्शन करती आई है। बहुजन समाज पार्टी की सरकार हो या सपा की सरकार रही हो ,केंद्र में जब कांग्रेस की सरकार के समय भाजपा ने भी कई मुद्दों पर प्रदर्शन किए । ये सभी का अधिकार भी है । लेकिन इस CAA के विरुद्ध शांति पूर्व प्रदर्शन कर रहे लोगों को आंतकवादी,देशद्रोही और दंगाइयों का नाम दिया जा रहा है ? इतने दिन गुज़र जाने के उपरांत भी न तो सरकार की ओर से कोई प्रदर्शनकारियों से बात करने गया और न ही प्रदर्शनकारियों को बातचीत के लिए बुलाया गया। अगर CAA से कोई ख़तरा नहीं तो ग्रहमंत्री अमित शाह खुले मंच पर CAA के 5 से10 विरोधियों को बुलाकर स्वंय उनसे डिबेट क्यों नहीं कर लेते । शायद दोनों तरफ से उपजी भ्रांति दूर हो जाए।ऐसे समय मे दिल्ली की जनता को आशा थी कि शायद आप के मुख्यमंत्री कुछ हस्तक्षेप करेंगे क़ानून व्ययवस्था के लिए आगे आएंगे लेकिन वो भी जीत की हैट्रिक मारने के बाद सिर्फ ज़बानी बातें कर रहे हैं। आज दिल्ली में हुई ग्रह विभाग की बैठक में उन्होंने शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील करके अपने फ़र्ज़ से दामन छुड़ा लिया। उन्होंने एक बार भी ये नहीं कहा कि जिन लोगों ने इस दंगे की बुनियाद डाली ,उन्हें तुरन्त गिरफ्तार किया जाए।जो व्यक्ति चुनाव के समय लाखों की भीड़ जुटा लेते थे ,आज शांति व्यवस्था बनाए रखने की अपील करने और पीड़ितों से मिलने उनके घर तक नहीं पहुचे ।